________________
काव्य और नाट्यशास्त्र के सिद्धान्त
२६५
ग्रन्थ थे । उसने अपने ग्रन्थों में उनका उल्लेख किया है, किन्तु वे अब नष्ट हो गये हैं ।
मम्मट ११०० ई० के लगभग हुआ था । उसने ध्वनि मत के आलोचकों को अपने उत्तरों के द्वारा मौन बना दिया और ध्वनि मत को पुनरुज्जीवित किया । उसने दस उल्लासों ( ( अध्यायों) में काव्यप्रकाश नामक ग्रन्थ लिखा है । इस ग्रन्थ की रचना में अल्लट भी उसका साथी था । अल्लट का दूसरा नाम अलक भी था । इस ग्रन्थ में उसने नाट्यशात्र को छोड़कर काव्यशास्त्र के सभी विषयों का पूर्ण विवेचन किया है । यह माना जाता है कि मम्मट ने नवम उल्लास में परिकर अलंकार तक ग्रन्थ की रचना की है और शेष भाग अल्लट ने लिखा है । इसमें स्मरणीय कारिकाएँ हैं । उनकी टीका मम्मट ने स्वयं उपयुक्त उदाहरणों के साथ की है । इनमें से कुछ कारिकाएँ नाट्यशास्त्र से ली हुई ज्ञात होती हैं । काव्यप्रकाश जब से लिखा गया, तभी से बहुत अधिक प्रचलित हो गया । तब से लेकर आज तक यह काव्यशास्त्र पर सबसे अधिक प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है । इस ग्रन्थ की प्रसिद्धि इस बात से ज्ञात होती है कि इस पर अब तक ७० टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं । मम्मट ने शब्दशक्ति विषय पर एक और ग्रन्थ शब्दव्यापारविचार लिखा है ।
हेमचन्द्र ( १९८८ - ११७२ ई० ) ने काव्यानुशासन लिखा है । इस ग्रन्थ पर उसने अपनी टीका अलंकारचूड़ामणि लिखी है । इसमें आठ अध्याय हैं । इसमें काव्यशास्त्र और नाट्यशास्त्र के सभी विषयों का विवेचन है । रुय्यक ने ११५० ई० में अलंकारसर्वस्व ग्रन्थ लिखा है । रुय्यक का दूसरा नाम हचक भी है । यह ग्रन्थ सूत्ररूप में है और उस पर टीका भी साथ ही है । इस टीका का नाम वृत्ति है । इस टीका के लेखक के विषय में विद्वानों में मतभेद है । कुछ विद्वानों का मत है कि सूत्र रुय्यक के लिखे हुए हैं और टीका उसके शिष्य मंख ने लिखी है । दूसरा मत यह है कि सूत्र और टीका दोनों का लेखक रुय्यक ही है । इस ग्रन्थ में रुय्यक ने अलङ्कारों का वैज्ञानिक विधि से विवेचन और विश्लेषण किया है । रुय्यक,