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काव्य और नाट्य शास्त्र के सिद्धान्त
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यह कवियों के लिए आवश्यक सभी बातों की एक बहुमूल्य निधि है । उसने इस ग्रन्थ में कतिपय कवियित्रियों का भी उल्लेख किया है । लेखक ने साहित्यिक विषयों से सम्बद्ध विषयों पर अपनी पत्नी अवन्तिसुन्दरी, पाल्यकीर्ति, श्यामदेव, मङ्गल आदि का उल्लेख किया है । उसने शैवसिद्धान्त तथा पञ्चरात्र इन दो धर्म सिद्धान्तों की भी चर्चा की है । अलङ्कार एक सातवाँ वेदाङ्ग और पन्द्रहवाँ विद्यास्थान है । रुद्रभट्ट के श्रृंगारतिलक में केवल रसों का विवेचन है । उसने शान्त को नवम रस स्वीकार किया है । इसी विषय पर उसका ग्रन्थ रसकलिका अभी तक अप्रकाशित है । श्रृङ्गारतिलक में त्रिपुरवध का उल्लेख किया गया है जो रुद्रभट्ट की ही कृति है । श्रृङ्गारतिलक का सर्वप्रथम उल्लेख हेमचन्द्र ( १०८८-१९७२ ई० ) के काव्यानुशासन में प्राप्त होता है । उसका निश्चित समय अज्ञात है, परन्तु वह १००० ई० से पूर्व अवश्य हुआ होगा । कुछ विद्वान् रुद्रभट्ट और रुद्रट को एक ही व्यक्ति मानते हैं ।
धारा के राजा मुंज के आश्रित कवि, विष्णु के पुत्र, धनंजय ( लगभग १०० ई० ) ने चार प्रकाशों में नाट्यशास्त्र विषय पर दशरूपक ग्रन्थ लिखा है । इसमें रसों पर भी विचार किया गया है। उसने भरत के नाट्यशास्त्र का हो अनुसरण किया है । इसमें नाट्यशास्त्र विषय पर ३०० स्मरणीय कारिकाएँ हैं | विष्णु का पुत्र धनिक संभवत: धनंजय का भाई था । उसने दशरूपक पर अवलोक नाम की टीका लिखी है । उसने यह टीका मुंज के स्वर्गवास के बाद लिखी है । टीका का समय १००० ई० के लगभग मानना चाहिए । दशरूपक अवलोक टीका के साथ उसी समय से बहुत अधिक प्रसिद्ध हुआ है । उस समय से लेकर आज तक यह नाट्यशास्त्र पर प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है । धनिक के काव्यशास्त्र पर एक ग्रन्थ काव्यनिर्णय का अवलोक में उल्लेख है | यह ग्रन्थ प्राप्य है । उपर्युक्त दो ग्रन्थों (दशरूपक और काव्यनिर्णय ) के लेखकों (धनंजय और धनिक ) ने शान्त रस के विरुद्ध प्रचण्ड प्रतिवाद किया ।
भोज ने धारा में १००५ ई० से १०५४ ई० तक राज्य किया है । वह स्वयं बहुत योग्य विद्वान् था और विद्वानों का आश्रयदाता था । इसने साहित्य