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________________ २६० संस्कृत साहित्य का इतिहास है । यह माना जाता है कि उसने ध्वनि, नाट्यशास्त्र और शैव मत पर ४१ ग्रन्थ लिखे हैं । इनके अतिरिक्त उसने शैव प्रागमों और कुछ स्तोत्र ग्रन्थों पर भी टीकाएँ लिखी हैं, ऐसा माना जाता है । ध्वनि पर उसने ध्वन्यालोक - लोचन लिखा है जो कि ध्वन्यालोक की टीका है । भरत के नाट्यशास्त्र पर उसने अभिनवभारती नामक टीका लिखी है । भट्टतौत के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ काव्यकौतुक पर उसने काव्यकौतुकविवरण नामक टीका लिखी है । अभिनवगुप्त का काव्यकौतुकविवरण केवल उद्धरणों से ही ज्ञात होता है । यह माना जाता है कि अभिनवगुप्त ने घटकर पर घटकर्पूरकुलकविवृति नामक टीका लिखी है । ध्वन्यालोकलोचन के दूसरे नाम हैं—सहृदयालोकलोचन या काव्यालोकलोचन । उसने उदाहरण के लिए श्लोक अपने तथा अन्य लेखकों के ग्रन्थों से दिये हैं । अभिनवगुप्त ने ध्वन्यालोक पर चन्द्रिका नामक एक टीका का उल्लेख किया है । उसने इसके लेखक का नाम नहीं दिया है । नाट्यशास्त्र पर उसकी अभिनवभारती एक महत्त्वपूर्ण टीका है । ध्वनि विषय पर श्रानन्दवर्धन और अभिनवगुप्त सबसे प्रामाणिक प्राचार्य । महिमभट्ट श्रीर कुन्तक ने ध्वनिवाद का उग्रता के साथ खण्डन किया है और उनका विचार आगे माना भी गया है, परन्तु ध्वनिवाद का जो महत्त्व आनन्दवर्धन और अभिनवगुप्त के कारण माना जाता रहा है, वह कदापि कम नहीं हुआ है । ध्वनिवाद ने काव्यशास्त्र के अन्य वादों रसवाद और अलंकारवाद आदि को बहुत अधिक प्रभावित किया है । बाद में रीतिवाद और वक्रोक्तिवाद का महत्त्व प्रायः समाप्त हो गया । जिस समय ध्वनिवाद का उद्भव और विकास हुआ, उस समय ध्वनिवाद के सिद्धान्तों के प्रचार के होते हुए भी रसवाद के प्रबल समर्थक विद्यमान थे । रस के विषय में इन प्राचार्यों के स्वतन्त्र और वैयक्तिक विचार थे । इनके अनुयायो बहुत कम हुए हैं । इनमें से कुछ ने ध्वनिवाद के प्रभाव की उपेक्षा की हैं और कुछ ने ध्वनिवाद का खण्डन भी किया है । लोल्लट ( ७००-८०० ई०) रसवाद का प्रबल समर्थक है । उसने नाट्यशास्त्र को टीका की थी । ह
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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