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संस्कृत साहित्य का इतिहास धूर्तनर्तक और पाँच अङ्कों में एक नाटक श्रीदामचरित । श्रीदामचरित में कुचेल का जीवन-चरित वर्णित है । कुचेल का वास्तविक नाम श्रीदामन् या सुदामन था । १८वीं शताब्दी के प्रारम्भ में विश्वेश्वर ने तीन ग्रन्थ लिखे हैं--एक नाटक रुक्मिणीपरिणय, एक नाटिका नवनाटिका और एक सट्टक शृंगारमंजरी । देवराज ने बालमार्तण्ड-विजय नाटक लिखा है । इसका समय १८वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। इसमें पाँच अङ्कों में कवि के आश्रयदाता ट्रावनकोर के राजा मार्तण्डवर्मन के पराक्रमों का वर्णन है। लगभग इसी समय वरदाचार्य ने वसन्ततिलक भाण नाटक लिखा है । इस नाटक का दूसरा नाम अम्माभाण भी है। इसी समय तन्जौर के राजा तुकोजी का मंत्री घनश्याम था। उसकी दो सुशिक्षित स्त्रियाँ थीं सुन्दरी
और कमला। दोनों ने राजशेखर के विद्धशालभंजिका की टीका लिखी है। घनश्याम एक सौ से अधिक ग्रन्थों का लेखक माना जाता है। उनमें से कुछ संस्कृत, प्राकृत और विभाषामों में हैं । कुछ प्राचीन कवियों के काव्यों पर टीकाएँ हैं। उसके ग्रन्थों में से मुख्य नाटक ये हैं--एक भाण ग्रन्थ मदनसंजीवन, दो सट्टक ग्रन्थ नवग्रहचरित और आनन्दसुन्दरी तथा एक प्रहसन डमरुक । ट्रावनकोर के युवराज रामवर्मन् ( १७५७-१७८६ ई० ) ने दो नाटक लिखे हैं--रुक्मिणीपरिणय और शृङ्गारसुधाकर । लगभग इसी समय हर्ष की रत्नावलो के अनुकरण पर विश्वनाथ ने मृगांकलेखनाटिका लिखा है । राम ( १८२० ई० ) ने एक डिम नाटक मन्मथोन्मथन लिखा है। कोटिलिंगपुर ( वर्तमान चरंगनौर ) के एक राजकुमार ने १८५० ई० के लगभग कुछ काव्य और नाटक लिखे हैं । उनमें से मुख्य रससदनभाण है ।
___ कुछ प्रमुख नाटक जिनका समय अज्ञात है, ये हैं-मथुरादास की एक नाटिका वृषभानुजा, जगदीश का एक प्रहसन हास्यार्णव, गोपीनाथ चक्रवती का एक प्रहसन कौतुकसर्वस्व, नीलकण्ठ का कल्याणसौगन्धिक, नरसिंह की दार्शनिक भावयुक्त नाटिका शिवनारायणभंज महोदय, लोकनाथभट्ट का कृष्णाभ्युदय, कृष्णावधूत घटिकाशत कवि का सर्वविनोद