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कालिदास के परवर्ती नाटककार
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नाटक इसलिए लिखा है कि उसने साहित्यशास्त्र पर जो ग्रन्थ लिखा है, उसमें नाट्यशास्त्र के विषय में जो नियम दिये हैं, उनका उदाहरण इसमें प्रस्तुत किया जाय । नरसिंह विद्यानाथ अथवा अगस्त्य का भतीजा था । उसने १३५० ई० के लगभग आठ अङ्कों में कादम्बरीकल्याण नाम से कादम्बरी की कथा को नाटकीय रूप में प्रस्तुत किया है । नरसिंह के भाई तथा मथुराविजय की लेखिका गंगादेवी के गुरु विश्वनाथ ने १३५० ई० के लगभग सौगन्धिकाहरण नामक व्यायोग रूपक लिखा है । इसमें वर्णन किया गया है कि द्रौपदी के कथन पर भीम सौगन्धिका का फूल लाता है । ज्योतिरीश्वर ने एक प्रहसन धूर्तसमागम लिखा है । उसकी उपाधि कविशेखर थी । वह १४वीं शताब्दी ई० के पूर्वार्द्ध में हुआ था । भास्कर ने उन्मत्तराघव नाम का एक एकांकी नाटक लिखा है । इसमें सीता के वियोग में उन्मत्त राम का वर्णन है । इसके लेखक का निर्णयात्मक परिचय अज्ञात है । यदि इस नाटक में उल्लिखित विद्यारण्य विजयनगर के निवासी प्रसिद्ध विद्वान् विद्यारण्य ही हैं, तो इसका समय १३५० ई० के लगभग माना जा सकता है । सीता स्त्रियों के लिए निषिद्ध एक उपवन में प्रवेश करती है और अदृष्ट हो जाती है | अगस्त्य ऋषि ने राम पर दया की और राम को सीता प्राप्त करा दी । यह पूरा नाटक विक्रमोर्वशीय के चतुर्थ अङ्क पर लिखा गया है | विजयनगर के हरिहर द्वितीय के पुत्र विरूपाक्ष ने एक एकांकी नाटक उन्मत्तराघव लिखा है । इसका समय १४वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध ज्ञात होता है । यह प्रेक्षणक नाटक है। सीता के हर्ता रावण पर लक्ष्मण ने आक्रमण किया और उसको मार दिया । राम उस समय उन्मत्तावस्था में थे । जब लक्ष्मण सीता को ले आये तब राम होश में आये । इस पर विक्रमोर्वशीय के चतुर्थ अङ्क का प्रभाव पड़ा है । विरूपाक्ष का ही दूसरा नाटक नारायणविलास है । एक नेपाली कवि मणिक ने १४वीं शताब्दी ई० के अन्तिम भाग में भैरवानन्द नामक नाटक लिखा है । इसमें भैरव का एक स्वर्गीय स्त्री मदनवती से प्रेमका वर्णन है । कोकिलसंदेश के लेखक उदण्ड ( १४०० ई० ) ने मल्लिकामरुत नामक एक दस अङ्कों में
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