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कालिदास के परवर्ती नाटककार
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विद्धसालभंजिका है । इसमें चार अङ्क हैं । यह एक नाटिका है । इसमें वर्णन किया गया है कि राजकुमार विद्याधरमल्ल ने दो राजकुमारियों मृगांकावली और कुवलयमल से विवाह किया । यह नाटिका मालविकाग्निमित्र, रत्नावली और स्वप्नवासवदत्त के अनुकरण पर लिखी गई है । बालभारत का दूसरा नाम प्रचण्डपाण्डव है । इसमें दो अङ्क हैं । इसमें द्यूतक्रीड़ा तक पाण्डवों के जीवन का वर्णन है । इसका पाँचवाँ नाटक हरविलास है । यह अप्राप्य है । बाद के साहित्यशास्त्रियों ने इसका उल्लेख किया है । इसके षष्ठ नाटक का नाम अज्ञात है ।
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राजशेखर ने अपने आपको वाल्मीकि का अवतार माना है । वह कथा की रचना में विशेष निपुण नहीं है । वह सुन्दर और परिष्कृत शैली के प्रयोग में बहुत दक्ष है । उसने एक पूरा नाटक प्राकृत में लिखा है । उसने अपने नाटकों में उन शब्दों का प्रयोग किया है, जो उसके समय में बोलचाल में प्रचलित थे ।
क्षेमीश्वर ने राजशेखर के आश्रयदाता कन्नौज के राजा महीपाल ( ९१४ ई० ) के लिए चण्डकौशिक नाम का एक नाटक लिखा है । अतः उसका समय ९०० ई० के लगभग मानना चाहिए । इसमें पाँच अङ्क हैं । इसमें विश्वामित्र और हरिश्चन्द्र की कथा है । इसको नैषधानन्द नाटक का भी लेखक माना जाता है । इसके सात अकों में नल का जीवन-चरित वर्णित है ।
इनके अतिरिक्त चार और नाटक हैं, जो मूल रूप में अप्राप्त हैं, किन्तु उद्धरणों के द्वारा ज्ञात हैं । ये हैं--तरंगदत्त, पुष्पदूषितक, पाण्डवानन्द और चलितराम । धनिक ( १००० ई०) ने अपने दशरूपावलोक में इनके उद्धरण दिये हैं । इन नाटकों का निश्चित समय अज्ञात है, तथापि इनका समय १००० ई० के पूर्व समझना चाहिए । इन चारों नाटकों के लेखकों का नाम भी अज्ञात है । इनमें से तरंगदत्त और पुष्पदूषितक प्रकरण नाटक हैं । तरंगदत्त में एक वेश्या नायिका है और पुष्पदूषितक में एक कुलीन स्त्री