SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ संस्कृत साहित्य का इतिहास त्मिक भाव वाले मन्त्र भी हैं । इसमें भी ऋग्वेद के मन्त्र हैं। यह वेद यज्ञों के सम्बन्ध में विशेष उपयोगी नहीं है । उक्त तीनों वेदों में यज्ञों का वर्णन मुख्यरूप से है, परन्तु इसमें उसका अभाव है। अतएव अन्य तीनों वेदों के साथ इसकी गणना बहुत समय तक नहीं की गई। पुरुष सूक्त में अन्य तीनों वेदों का उल्लेख है, परन्तु इसका उल्लेख नहीं है ।' त्रयी शब्द अन्य तीनों वेदों के लिए ही प्रयोग में आता है। बाद के समय में अन्य तीन वेदों के साथ उसकी भी गणना समान रूप से की गई और इसको चौथा वेद माना गया। प्रत्येक वेद चार भागों में विभक्त है, अर्थात् संहिता, ब्राह्मण, प्रारण्य क और उपनिषद् । संहिता भाग में मन्त्रों का वह भाग है, जिसमें देवस्तुति है तथा जिसको विभिन्न यज्ञों के समय पढ़ा जाता था । ब्राह्मण ग्रन्थों में वह अंश है, जो मन्त्रों के विधिभाग की व्याख्या करता है । आरण्यक ग्रन्थों में वह अंश है, जिन विधियों को वानप्रस्थ की अवस्था में मनुष्य को वन में करना चाहिए । उपनिषदों में दार्शनिक सिद्धान्त हैं, जो कि योग्य शिष्यों को ही बताने योग्य हैं। चारों वेदों के संहिता भाग, शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ और कृष्ण यजुर्वेद के ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् स्वर-चिह्नों से युक्त हैं । इन मलग्रन्थों में संगीतात्मक स्वर हैं । स्वर तीन हैं-उदात्त, अनुदात और स्वरित । उदात्त का अर्थ है उठी हुई ध्वनि, , अनुदात्त का अर्थ है नीची ध्वनि और स्वरित का अर्थ है दोनों की मिश्रित ध्वनि । ऋग्वेद में उदात्त वर्ण पर कोई चिह्न नहीं है । अनुदात्त का चिह्न वर्ण के नीचे सीधी लकीर है और स्वरित का चिह्न वर्ण के ऊपर सीधी खड़ी लकीर है । इन वेदों में इन स्वरों के चिह्न विभिन्न रूप से लगाये गए हैं। । १. ऋग्वेद १०-६०-६ (देखो ऐतरेय ब्राह्मण ५-३२)। २. मुण्डकोपनिषद् १-१-५, गोपथ ब्राह्मण २-१६ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy