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सस्कृत साहित्य का इतिहास
है, किन्तु भवभूति ने उसके उन्नत और भयंकर रूप को अपनाया है । कालिदास ने नाट्यशास्त्रों द्वारा निर्धारित परम्पराओं का पालन किया है, अतः वह निश्चित सीमा के अन्दर ही विचरण कर सकता था, परन्तु भवभूति ने उन सीमाओं का उल्लंघन किया है और अपने कौशल के प्रदर्शन के लिए विस्तृत क्षेत्र को अपनाया है। जैसे मालतीमाधव में उसने नाटकीय परम्परा के विरुद्ध रंगमंच पर व्याघ्र को दिखाया है, श्मशान का दृश्य दिखाया है और मनुष्य के मांस का बेचना दिखाया है। उसने भयंकर वनों और पर्वतीय अधित्यकाओं और उपत्यकानों के दृश्यों का वास्तविक चित्र उपस्थित किया है । कालिदास भवभूति की अपेक्षा कल्पना और भावों में बढ़ा हुआ है और भवभूति गम्भीर, प्रोजस्वी और भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति में सर्वोच्च प्राचार्य है। कालिदास जो बात संक्षेप में व्यंजना के द्वारा अभिव्यक्त करते हैं, भवभूति उसको व्यापक और प्रोजस्वी रूप में प्रकट करते हैं। कालिदास पूर्णतया आशावादी थे, अतः उनके पात्र वास्तविक होने की अपेक्षा अधिक रसिक एवं काल्पनिक हैं। भवभूति ने संसार के दुःखों को भुगता था और निराशा का भी अनुभव किया था। उनके पात्र काल्पनिक न होकर अधिक सांसारिक और वास्तविक है। 'किसी भी अन्य भारतीय नाटक की अपेक्षा भवभूति के नाटक में प्रायश्चित्त के कारण पवित्र राम और सीता के कोमल प्रेम का अधिक वास्तविकता के साथ वर्णन है।' कालिदास ने अपने पात्रों के द्वारा कुछ सामान्य उपदेशात्मक सूक्तियाँ कहवाई हैं, किन्तु भवभूति की सूक्तियाँ उच्चकोटि को हैं। उनके पात्र अपने अनुभव को बातें कहते हैं। जैसे-कर्त्तव्य-पालन और आत्मबलिदान'
१. मालती माधव १-८ ।
P. A. A. Macdonell : History of the Sanskrit literature,
पृष्ठ ३६५ । ३. उत्तररामचरित १-१२ ।