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________________ २५५ कारण है कि उसकी रचनाओं में कोयल, आम्रमञ्जरी, अशोक और बकुल आदि वृक्षों का उल्लेख नहीं हैं । वह माधव से मनुष्य का मांस बेचवाता है और श्मशान का वर्णन करता है । भवभूति ने कथा के वर्णन में कोई विशेष योग्यता प्रदर्शित नहीं की है। उसने अपने नाटकों में समय की एकता का भी पालन नहीं किया है। उसने चरित्र चित्रण बहुत अच्छा किया है, अतः उसका यह दोष छिप जाता है । उसके सभी पात्र सजीव और भावपूर्ण हैं । उसके नाटकों में एक विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि उनमें विदूषक का सर्वथा अभाव है । उसके नाटकों में से मालतीमाधव में शृङ्गार रस मुख्य है, महावीरचरित में वीररस और उत्तररामचरित में करुण रस मुख्य है । मालतीमाधव आदि के पठन से ज्ञात होता है कि वह भयानक वीभत्स आदि रसों के वर्णन में भी उसी प्रकार दक्ष है, परन्तु करुण रस के वर्णन में अनुपम है । अतएव कहा जाता है कि ' कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' तथा 'उत्तरे रामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' शृङ्गार के वर्णन में उसने विषय-वासना वाले प्रेम तथा अन्तःपुर के वर्णन को नहीं लिया है। उसने स्त्री और पुरुष के आदर्श प्रेम का ही वर्णन किया है, जो प्रजन्म पवित्र जीवन बिताते हैं । उसकी शैली गौड़ी है, विशेष रूप से. महावीरचरित और मालतीमाधव में । उसकी शैली परिपुष्ट, उत्कृष्ट, प्रोजस्विनी और सामंजस्ययुक्त है । उत्तररामचरित को छोड़कर अन्य नाटकों में उसने जो गद्यांश दिए हैं, वे इतने लम्बे और क्लिष्ट हैं कि उनका सौन्दर्य नष्ट हो गया है । उसकी पंक्तियों में कवित्व की अपेक्षा भाव की अधिकता है। उसने शिखरिणी छन्द का बहुत कुशलता के साथ प्रयोग किया है । " महत्त्व और ख्याति की दृष्टि से नाटककारों में कालिदास के बाद भवभूति का ही स्थान है । उसने चरित्र चित्रण और शैली का एक नवीन मार्ग उपस्थित किया है । कालिदास ने प्रकृति के कोमल रूप को अपनाया १. क्षेमेन्द्रकृत सुवृत्ततिलक ३-३३ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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