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संस्कृत साहित्य का इतिहास
अधिक सहायता प्रदान करते हैं । विक्रमोर्वशीय में, प्रेमी का मिलन और उर्वशी के लिए राजा की खोज -- इन दो दृश्यों पर पूर्ण विचार किया गया है | अभिज्ञानशाकुन्तल में एक भी ऐसा दृश्य नहीं है जिसमें सौन्दर्य और आकर्षण न हो । ऐसा कहा जाता है कि इस नाटक का चतुर्थ ग्रङ्क बहुत ही रम्य है और उसमें चार श्लोक सर्वोत्तम हैं । '
देखिए :
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काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला ।
तत्रापि च चतुर्थोऽङ्कः तत्र श्लोकचतुष्टयम् ।।
कुछ लोगों के अनुसार चतुर्थ अङ्क की अपेक्षा पंचम अङ्क अधिक रम्य है ।
देखिए :
शाकुन्तलचतुर्थोऽङ्कः सर्वोत्कृष्ट इति प्रथा ।
न सर्वसम्मता यस्मात्पंचमोऽस्ति ततोऽधिकः ।।
यह नाटक कई विभिन्न संस्करणों में प्राप्त होता है। इसका नाम अभिज्ञानशाकुन्तल इसलिए पड़ा, क्योंकि इसमें अँगूठी दी थी और बाद की घटनाएँ इसी के मुख्य रस श्रृङ्गार है परन्तु चतुर्थ अंक से धारा है ।
राजा ने पहचान के रूप में आधार पर हैं। इस नाटक में साथ ही साथ करुण रस की भी
कालिदास ने नाटक को सुखान्त बनाने के लिए शाकुन्तल और विक्रमोवंशीय में दैवी अंश को भी स्थान दिया है । उसने कथानक के विकास के लिए मालविकाग्निमित्र में नृत्य, विक्रमोर्वशीय में नाटकीय प्रदर्शन और शाकुन्तल में गीत को स्थान दिया है । कालिदास नाटककार, कवि और गीति-काव्य लेखक के रूप में
कालिदास ने अपने नाटकों के लिए शृङ्गार रस को अपनाया है । उसके प्रत्येक नाटक में श्रृङ्गार और चरित्र चित्रण बहुत व्यवस्थित रूप में
१. अभिज्ञानशाकुन्तल ४ - ६, ९, १७ और १८ ।