SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० संस्कृत साहित्य का इतिहास रस के परिपाक में विघ्न होता । रस-परिपाक के लिए ही कैशिको, सात्वती, आरभटी और भारती इन चार नाटकीय वृत्तियों का उपयोग किया जाता है। अलंकारों का प्रयोग भी रस की पुष्टि के लिए ही किया जाता है । रसपरिपाक को जो इतना महत्त्व दिया गया है, उससे कुछ अंश तक संस्कृत नाटक आदर्शवादी हो गये हैं । पद्यांश की अधिकता, गद्यांश का कम प्रयोग, एक ही प्रकार के कथानक और पात्र आदि के कारण इन नाटकों की वास्तविकता कम हो जाती है। इन बातों के होते हुए भी भास, कालिदाय, भट्टनारायण, शूद्रक, विशाखदत्त आदि के नाटकों में वास्तविकता की कमी नहीं है । उपर्युक्त बातों का यह प्रभाव हुआ कि संस्कृत के नाटक अधिकांग में पाठ्य-ग्रन्थ हुए, उनका अभिनय ठीक ढंग से नहीं हो सका । इन नाटकों के कथानक रामायण, महाभारत पर या उपाख्यानों पर आधारित हैं अथवा इनकी कथाएँ काल्पनिक हैं । बहत से नाटककारों ने रामायण और महाभारत से ही अपने कथानक लिए हैं । उन्होंने कथानक में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया है । कालिदास तथा भवभूति आदि कतिपय कवियों ने मुल कथानक में कुछ परिवर्तन किया है। बहुत कम कवियों ने नवीन कथा का आविष्कार किया है और सफलतापूर्वक उसको प्रस्तुत किया है । शूद्रक ही अकेला ऐसा कवि है जो इस दृष्टि से सफल हुआ है। साधारणतया नाटकों का विषय प्रेम-कथा है । एक राजकुमार, जिसके कई विवाह हो चुके हैं, रानी की सेविका के रूप में नियुक्त अज्ञात कुल की युवती स्त्री से प्रेम करने लगता है । रानी नई सेविका पर कठोर नियन्त्रण रखती है कि वह उसके पति का ध्यान आकृष्ट न करे । परन्तु राजकुमार विदूषक की सहायता से उस युवती से एकान्त में मिलने का प्रबन्ध कर लेता है । जब यह घोषणा हो जाती है कि दोनों का प्रेम-प्रसंग हो गया है तो रानी उस सेविका को राजकुमार को अर्पण कर देती है । साधारणतया इस प्रकार के कथानक हैं । कुछ नाटकों में कुछ परिवर्तन भी हैं । शूद्रक के नाटक मृच्छकटिक में प्रेम-कथा और राजनीतिक कथा मिश्रित है। इस नाटक का कथा-संघटन बहुत उत्तम है । हर्षवर्धन के नागानन्द की कथा में
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy