________________
२.१
नीति-कथाएँ समय से बहुत समय पूर्व लिखा जा चुका होगा । इस ग्रंथ का उद्देश्य, जैसा कि पुस्तक में वर्णित है, पाटलिपुत्र के राजा सुदर्शन के पुत्रों को नीतिविषयक शिक्षा देना था। इस ग्रन्थ की शैली बहुत सरल और प्राकर्षक है। यह ग्रन्थ भारतीय भाषाओं में भी बहत प्रचलित है।
पंचतन्त्र और हितोपदेश राजनीति-शास्त्र की श्रेणी में आते हैं । इन दोनों ग्रन्थों के अतिरिक्त इस विषय के और भी ग्रन्थ रहे होंगे । इनमें से कुछ नष्ट हो गये होंगे और कुछ पंचतन्त्र और हितोपदेश में ही सम्मिलित हो गये होंगे। ___ बौद्धों और जैनों के नीति-कथा के ग्रन्थ अपने हैं। एक जैन सिद्धर्षि ने ६०६ ई० में उपमितिभावप्रपंचकथा ग्रन्थ लिखा है । यह गद्य में है, बीच-बीच में पद्य हैं। इसमें बहुत-सी कथाएँ सम्मिलित हैं । इसमें भावजगत की अनेकरूपताएँ कहानियों के द्वारा प्रस्तुत की गई हैं । हेमचन्द्र ( १०८८-११७२ ई० ) ने अपने ग्रन्थ त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित के परिशिष्ट के रूप में परिशिष्टपर्व लिखा है । इसमें जैन मुनियों की आत्मकथाएँ हैं । साथ ही इसमें बहुत-सी प्रचलित कहानियाँ भी सम्मिलित हैं ।