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संस्कृत साहित्य का इतिहास
यह मूल ग्रन्थ का परिमाजित और संशोधित रूप है । इसके नाम में प्राख्यायिका शब्द से ज्ञात होता है कि मूल ग्रन्थ को कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रन्थ कश्मीर में प्राप्त होता है । पंचतन्त्र कई संस्करणों में प्राप्त होता है । बृहत्कथा और कथासरित्सागर के अनुसार पंचतन्त्र का स्वरूप दुसरा हो है। पंचतन्त्र का एक जैन संस्करण ११०० ई० के लगभग तैयार हुआ है । इसमें माघ ( ७०० ई० ) और रुद्रभट्ट ( ६०० ई० ) का उल्लेख है । इसमें कहानियों में परिवर्तन किया गया है और नई कहानियाँ जोड़ी गई हैं । ११६६ ई० में एक जैन पूर्णभद्र ने पंचतन्त्र का एक नवीन संस्करण तैयार किया । यह तन्त्राख्यायिका, पंचतन्त्र के जैन संस्करण तथा अन्य आधारों पर अवलम्बित है । इस संस्करण में गुजराती और प्राकृत वाले प्रयोग भी प्राप्त होते हैं । इस संस्करण का नाम पंचाख्यानक है । एक जैन लेखक मेघविजय ( १६६० ई० ) ने पंचाख्यानोद्वार ग्रन्थ लिखा है । इसमें बहुत-सी मनोरंजक कहानियाँ है । पंचतन्त्र के दक्षिण भारत में कई संस्करण प्राप्त होते हैं । इसमें कालिदान
और भवभूति का उल्लेख है । यह ग्रन्थ ६०० ई० के बाद बना होगा । पंचतन्त्र की एक नेपाली हस्तलिखित प्रति है । इसमें केवल श्लोक ही हैं, केवल एक संदर्भ गद्य में है। यह दक्षिण भारत में पंचतन्त्र नाम से प्रसिद्ध है और उत्तर भारत में चाख्यानक नाम से । पंचतन्त्र का शुकसप्तति और वैतालपंचविंशतिका पर बहुत प्रभाव पड़ा है।
हितोपदेश पंचतन्त्र का पुननिर्माण करने के लिए एक दूसरा प्रयत्न है । इसमें नया विषय भी सम्मिलित किया गया है। पंचतन्त्र की अधिकांश कहानियाँ इसमें पुनः दृष्टिगोचर होती हैं । कामन्दक के नीतिसार से इसमें श्लोक संगृहीत हैं । इसके केवल चार खण्ड हैं । उनके नाम हैं-मित्रलाभ, सुहृद्भेद, विग्रह और सन्धि । पंचतन्त्र का चौथा तन्त्र इसमें सर्वथा छोड़ दिया गया है । हितोपदेश का चौथा खण्ड लेखक की अपनी कृति है । इसका लेखक नारायण है । यह बंगाल के एक धवलचन्द्र का आश्रित कवि है । इसकी सबसे प्राचीन हस्तलिखित प्रति १३७३ ई० की है । यह ग्रंथ इस