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संस्कृत साहित्य का इतिहास
ग्रन्थ भी भारतीय भाषाओं में अनूदित प्राप्य है । विक्रमादित्य के पराक्रम का वर्णन करने वाले अन्य ग्रन्थ ये हैं--१. अनन्तरचित वीरचरित्र, २. एक अज्ञात लेखक का विक्रमोदय, ३. एक जैन लेखक का चदण्डक्षत्रप्रवन्ध, ४. शिवदास की शालिवाहनकथा और वेतालपंचविशतिका आदि।
शुकसप्तति ७० कहानियों का संग्रह है । इसके लेखक और समय का पता नहीं है। इसमें एक तोता अपनी स्वामिनी को ७० रात तक एक-एक कहानी करके ७० कहानियाँ सुनाता है। उसकी स्वामिनी अपने पति के अभाव में दुराचारिणी होना चाहती थी। तोता प्रतिदिन रात भर एक कहानी सुनाता था, इस प्रकार उसने अपनी स्वामिनी को दुराचारिणी होने से बचाया । यह गद्य में है। इसका फारसी में अनुवाद १४वीं शताब्दी ई० में हुआ है। हेमचन्द्र (१०८८-११७२ ई०) शुकसप्तति को जानता था । अतः इसका रचनाकाल १००० ई० से पूर्व है।
बल्लालसेन ने १६वीं शताब्दी में भोजप्रबन्ध लिखा है । यह अधिकांश पद्य में है, थोड़ा अंश गद्य में है । इसमें उसने राजा भोज के राजद्वार का विशद वर्णन किया है। राजा भोज स्वयं कवि था और कवियों का आश्रयदाता था। राजा भोज राजद्वार की कविगोष्ठियों का सभापति होता था। कविगोष्ठी में भाग लेने वाले कालिदास, दण्डी, बाण, माघ, भवभूति आदि थे। कवि-गोष्ठियों के कार्य का विवरण प्रत्युत्पन्न मतित्व तथा हास्य से युक्त है। समस्यापूरण' या समस्यापूर्ति के रूप में निम्नलिखित श्लोक भोजराजपरिषद् के क्रिया-कलाप पर प्रकाश डालता है--
भोज:-परिपतति पयोनिधौ पतङ्गः बाण:--सरसिरहामुदरेषु मत्तभृङ्गः । महेश्वरः-उपवनतरुकोटरे विहङ्गः
कालिदासः- युवतिजनेषु शनैः शनैरनङ्गः ।। १. उस श्लोक की पूर्ति करना जिसका एक अंश किसी ने पहले ही बना दिया है- समस्यापूरण कहलाता है ।