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कथा - साहित्य
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जातकों और अवदानों का गद्य और पद्य में एक संग्रह सूत्रालंकार या कल्पनामण्डित नाम से है । इसकी मूल प्रति खण्डित रूप में प्राप्य है । इसका लेखक अश्वघोष समझा जाता था, परन्तु कुछ समय पूर्व ज्ञात हुआ है कि इसका लेखक अश्वघोष के बाद का एक लेखक कुमारलात है ।
वेतालपंचविशतिका २५ कहानियों का एक संग्रह है। इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार राजा विक्रमादित्य एक वेताल को पकड़ना चाहता है और वह उसे ये २५ कथाएँ सुनाता है । ये कथाएँ बहुत प्राचीन हैं । ये बृहत्कथामंजरी और कथासरित्सागर दोनों में सम्मिलित की गई हैं । इनके अतिरिक्त इन कथाओं को शिवदास ने १२वीं शताब्दी ई० में गद्य और पद्य रूप में प्रस्तुत किया है, जम्भालदत्त ने गद्य रूप में प्रस्तुत किया है, वल्ल्भदेव ने इसका एक संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया है और एक अज्ञात लेखक का संस्करण गद्य में है । इस ग्रन्थ की प्रसिद्धि इस बात से ज्ञात होती है कि इसका अनुवाद बहुत-सी भारतीय भाषाओं में हुआ है ।
विक्रमादित्य से संबद्ध वेतालपंचविंशतिका की तरह कई कथा - ग्रन्थ हैं | सिंहासनद्वात्रिंशिका में ३२ कहानियाँ हैं । विक्रमादित्य के सिंहासन की ३२ सीढ़ी में प्रत्येक में एक पुतली बनी हुई थी । उनमें से प्रत्येक ने एक कहानी कही है । पुतलियों ने यह कहानियाँ राजा भोज को कही हैं । जब यह सिंहासन मिला, तब राजा भोज उस पर बैठना चाहता था । पुतलियों ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने से रोका और एक-एक दिन एक-एक पुतली ने एक-एक कथा विक्रमादित्य के पराक्रम की उसे सुनाई और कहा कि यदि वह इन गुणों से युक्त हो तो सिंहासन पर बैठे, अन्यथा नहीं । इस प्रकार पुतलियों ने उसे ३२ दिन रोक कर रक्खा । इसका लेखक और इसका समय अज्ञात है । इस ग्रन्थ के दूसरे नाम द्वात्रिंसत्पुत्तलिका और विक्रमार्कचरित हैं । १४वीं शताब्दी ई० के एक जैन लेखक क्षेमंकर ने गद्य में इसका जैन रूपान्तर प्रस्तुत किया है । इसका एक रूपान्तर वररुचि के नाम से प्रसिद्ध बंगाल में प्राप्य है । दक्षिण भारत में यह विक्रमार्कचरित के नाम से प्रसिद्ध है । यह
सं० सा० इ० - १३