________________
कथा-साहित्य
१६१
लेखक धनपाल और दशकुमारचरित के लेखक दण्डी पर बृहत्कथा का बहुत प्रभाव पड़ा है ।
नेपाल के बुधस्वामी ने इलोकसंग्रह लिखा है । इसी का दूसरा नाम बृहत्कथाश्लोकसंग्रह है । इस ग्रन्थ के नाम से ज्ञात होता है कि मूल ग्रन्थ पद्य में था । श्लोकसंग्रह में २८ सर्ग तथा ४५३६ श्लोक हैं । यह ग्रन्थ अपूर्ण ज्ञात होता है । जितना अंश प्राप्य है, उससे ज्ञात होता है कि बुधस्वामी ने लगभग २५ सहस्र श्लोक लिखे होंगे । इस संक्षिप्त ग्रन्थ में क्षेमेन्द्र और सोमदेव की कथा से भेद है । इसमें वर्णनों का अभाव है और शब्दों के प्राकृत रूपों का प्रयोग है । इससे ज्ञात होता है कि यह मूल ग्रन्थ के अधिक समीप है । इसकी हस्तलिखित प्रति नेपाल से प्राप्त हुई है, इसके अतिरिक्त इसको नेपाल की रचना मानने का और कोई आधार नहीं है । आलोचकों का कथन है कि यह हस्तलिखित प्रति की प्राचीन प्रति के आधार पर आठवीं या नवीं शताब्दी में लिखा गया है ।
क्षेमेन्द्र ने १०३७ ई० में बृहत्कथा का संक्षिप्त रूप बृहत्कथामंजरी लिखा है । इसमें १६ अध्याय हैं और ७५०० श्लोक हैं । इस ग्रन्थ का श्लोकसंग्रह से जो भेद है, उससे ज्ञात होता है कि इसमें कुछ ऐसी कथाएँ भी सम्मिलित कर दी गई हैं, जो कश्मीर में प्रचलित थीं । जैसे विक्रम और वेताल की कथा इसमें संग्रहीत है । श्लोकसंग्रह अपूर्ण है, अत: उसके आधार पर यह निश्चयरूप से नहीं कहा जा सकता है कि यह कथा कश्मीरी देन है । क्षेमेन्द्र ने जो बहुत लम्बी कथा को अतिसंक्षिप्त किया है, उससे वह दुर्बोध हो गयी है । मूल ग्रन्थ में नरवाहनदत्त प्रमुख पात्र है, परन्तु इसमें वह गौण स्थान पर है ।
कश्मीर के राम के पुत्र सोमदेव ने १०६३ ई० और १०८१ ई० के बीच में कथासरित्सागर लिखा है । यह वस्तुतः बृहत्कथासरित्सागर है । यह १८ लम्बकों में विभक्त है । इनके उपविभाग ९२४ तरंगें हैं । इसमें २२ सहस्र श्लोक हैं । क्षेमेन्द्र की बृहत्कथामंजरी की तरह इसमें भी कश्मीरी