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________________ १६० संस्कृत साहित्य का इतिहास प्रदेश में बोली जाती थी । इस विषय का निर्णय इस आधार पर किया जा सकता है कि उस समय ११ भाषाएँ देश के विभिन्न भागों में बोली जाती थीं।' इससे यह मानने में कोई कठिनाई नहीं आती है कि विन्ध्य प्रदेश पैशाची 'प्राकृत की जन्मभूमि है । गुणाढ्य ने पैशाची प्राकृत को साहित्यिक स्वरूप प्रदान किया। यह दण्डी के काव्यादर्श के लेख से सिद्ध होता है-- ___ 'भूतभाषामयीं प्राहुरद्भुतार्था बृहत्कथाम्' । काव्यादर्श १-३८ कम्बोडिया के ८७५ ई० के शिलालेख में यह उल्लेख किया गया है कि गुणाढ्य ने प्राकृत को क्यों अपनाया। इससे भी बृहत्कथा का प्राकृत में होना ज्ञात होता है । यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि गुणाढ्य ने यह ग्रन्थ गद्य में लिखा था या पद्य में । इसके संक्षिप्त रूप पद्य में है । दण्डी ने इसको कथा कहा है, इसके आधार पर यह माना जा सकता है कि यह गद्य में रहा होगा । अथवा कथा का अर्थ केवल कहानी मात्र समझना चाहिए। परवर्ती लेखकों में बृहत्कथा ने पर्याप्त प्रशस्ति प्राप्त की और उनकी रचनाओं को प्रभावित किया। देखिए : समुद्दीपितकन्दर्पा कृतगौरीप्रसाधना । हरलीलेव नो कस्य विस्मयाय बहत्कथा । --हर्षचरित की भूमिका श्लोक १७ बाण, सुबन्धु और दण्डी ने इसकी ख्याति का उल्लेख किया है। संक्षिप्त ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि बृहत्कथा का आधार रामायण, बहुत प्राचीन समय से प्रचलित उदयन और वासवदत्ता की कथा, समुद्री यात्राएँ, व्यापारियों और राजकुमारों की पराक्रम-कथाएँ हैं । बाद के लेखकों पर बृहत्कथा का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है । बाण और सुबन्धु को बृहत्कथा की कहानियाँ ज्ञात थीं। यशस्तिलकचम्पू के लेखक सोमदेव, तिलकमंजरी के १--सद्भाषाचन्द्रिका पृ० ४।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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