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________________ अध्याय १८ चम्पू गद्य और पद्यात्मक दो प्रकार की रचना के अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार की रचना.होती है, उसे चम्पू कहते हैं । गद्य और पद्य-मिश्रित रचना को चम्पू कहते हैं । इसमें गद्य और पद्य को प्रायः समान स्थान दिया जाता है । वर्णन और विवरण के लिए गद्य का उपयोग किया जाता है और प्रभावोत्पादक तथा निश्चित बात के कहने के लिए पद्य का उपयोग किया जाता है । साधारणतया गद्य में जो बात विस्तार के साथ कही जाती है, उसी को पद्य में संक्षिप्त रूप में कहा जाता है । गद्य और पद्य के इस प्रकार चम्पू के रूप में मिश्रण की विद्वानों ने बहुत प्रशंसा की है। इसे मौखिक और वाद्य संगीत का समन्वय तथा द्राक्षा और मधु का मिश्रण बताया है ।' ___ इस प्रकार का काव्य ईस्वी सन् के प्रारम्भ से पूर्व ही प्रारम्भ हो चुका था । गुप्तकाल के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि इस प्रकार का काव्य चतुर्थ शताब्दी ई० में विद्यमान था । इस प्रकार से लिखे हुए ग्रन्थों को चम्पू कहते हैं, परन्तु कतिपय ग्रन्थों के नाम में चम्पू नाम नहीं है । सबसे प्राचीन चम्पू-काव्य नलचम्पू है, इसका दूसरा नाम दमयन्तीकमा है । इसके लेखक त्रिविक्रमभट्ट हैं । उसके पिता घर से कहीं बाहर गये हुए थे, उस समय एक कवि ने आकर उसके पिता को योग्यता-प्रदर्शनार्थ आह्वान १. गद्य-पद्यमयी काचिच्चम्पूरित्यभिधीयते । दण्डी का काव्यादर्श १. ३१ । २. भोज का चम्पूरामायण-बालकाण्ड ३ । ३. वेंकटाध्वरी का विश्वगुणादर्श ४ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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