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गद्यकाव्य
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प्रोडयदेव की उपाधि वादीभसिंह थी । इसने ११ लम्बकों (अध्यायों) में गहाचिन्तामणि ग्रन्थ लिखा है । इसमें एक राजकुमार जीवन्धर के जीवनचरित का वर्णन किया गया है । वह संन्यासी हो गया था। इसमें जीवन्धर को जो उपदेश दिया गया है, वह कादम्बरी में शुकनास के द्वारा चन्द्रापीड को दिये गये उपदेश के अनुकरण के रूप में है । उसने क्षत्रचूडामणि ग्रन्थ भी लिखा है, यह तामिल भाषा के ग्रन्थ जीवकचिन्तामणि का संस्कृत अनुवाद है । इसका समय १२०० ई० के लगभग है । ___ बालभारत के लेखक अगस्त्य (१३२० ई०) ने कृष्णचरित ग्रन्थ भी लिखा है । रघुनाथचरित और नलाभ्युदय के लेखक वामनभट्ट बाण (१४२० ई०) ने वेमभूपालचरित ग्रन्थ भी लिखा है । इस ग्रन्थ का दूसरा नाम वीरनारायणचरित है । इस ग्रन्थ में उसने अपने आश्रयदाता वेमभूपाल राजाओं की वंशावली चार अध्यायों में दी है । यह कालिदास विरचित रघुवंश और अभिज्ञानशाकुन्तल की अनुकृति है। इसमें पग-पग पर बाण का प्रभाव पाया जाता है । वह अपना स्थान बाण, सुबन्धु और कविराज के समकक्ष मानता है, परन्तु वह इस योग्य नहीं है। अनन्तशर्मा (१६५० ई०) ने विशाखदत्त की मद्राराक्षस-कथा के आधार पर मुद्राराक्षसपूर्वसंकथानक नामक गद्य की रचना की है। इसमें काली की स्तुति दण्डक में है।