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संस्कृत साहित्य का इतिहास बाण ने ये ग्रन्थ लिखे हैं--दो गद्य-ग्रन्थ--हर्षचरित और कादम्बरी, एक चण्डीशतक नामक गीतिकाव्य और एक ग्रन्थ मुकुटताडितक । मुकुटताडितक नष्ट हो गया है, अतः इसका विषयादि अज्ञात है। आलोचकों ने बाण को रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानन्द इन तीन नाटकों का भी रचयिता माना है। तीनों नाटक राजा हर्ष की रचना माने जाते हैं । बाण उच्चकोटि का एवं परिष्कृत गद्य-लेखक है। उसके पद्य सौन्दर्य और कल्पना की दृष्टि से उतने उच्चकोटि के नहीं हैं। इसका समर्थन चण्डीशतक करता है। उपर्युक्त तीनों नाटकों में श्लोक अपेक्षाकृत सरल और अलंकृत हैं। इन पर बाण का प्रभाव दिखाई नहीं देता है । अतः इन तीनों नाटकों को बाण की रचना मानना उचित नहीं है। यह कथन कि हर्ष ने बहुत धन देकर अपने नाम से ये ग्रन्थ बाण से लिखवाए हैं, सर्वथा निराधार है । यदि बाण ने धन के लिए ग्रन्थरचना की होती तो वह कादम्बरी को ही हर्ष के नाम से लिखता और इसके द्वारा बहुत धनराशि प्राप्त करता।
बाण के दो गद्य-ग्रन्थों में से हर्षचरित प्रारम्भिक रचना है । इसमें पाठ उच्छवास हैं। प्रथम दो उच्छवासों और तृतीय के कुछ भाग में बाण ने आत्मकथा दी है । उसने तृतीय उच्छवास में हर्ष के वंश के आदिपुरुष पुष्पभूति का उल्लेख किया है । अवशिष्ट अध्यायों में उसने प्रभाकरवर्धन का जीवन, हर्ष और उसके बड़े भाई राज्यवर्धन और उसकी छोटी बहन राज्यश्री की उत्पत्ति और विकास का वर्णन किया है। राज्यश्री का विवाह मौखरी राजा ग्रहवर्मा के साथ हुआ था। प्रभाकरवर्धन के स्वर्गवास के बाद ही मालवा के राजा ने ग्रहवर्मा का वध कर दिया था। राज्यवर्धन ने मालवा के राजा पर आक्रमण किया और उसका वध कर दिया, किन्तु मार्ग में ही गौड़ राजा ने उसके शिविर में ही उसका धोखे से वध कर दिया। हर्ष ने गौड़ राजा के विरुद्ध प्रस्थान किया, किन्तु मार्ग में राज्यश्री के अज्ञात स्थान पर चले जाने का समाचार सुनकर उसने उसको ढूंढा और उसको ग्रहवर्मा के मित्र एक बौद्ध संन्यासी की देख-रेख में रखकर गौड़ राजा की ओर प्रस्थान किया। यह कथा अपूर्ण रूप से यहीं पर बाण ने समाप्त कर दी है ।