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संस्कृत साहित्य का इतिहास
जानाते यत्र चन्द्रार्को जानते यत्र योगिनः ।
जानीते यन्न भर्गोऽपि तज्जानाति कवि स्वयम् ।। शान्तिविलास में ५१ श्लोक हैं । इसमें मानसिक शान्ति के लाभ बताए गए हैं । वैराग्यशतक में वैराग्य का जीवन बिताने के लाभ बहुत बल के साथ बताए गए हैं। गुमानि कवि ने उपदेशशतक लिखा है। इसमें मनप्यों के लिये उपदेशात्मक १०० श्लोक हैं। वेंकटाध्वरी (१६५० ई०) का सुभाषितकौस्तुभ भी इसी प्रकार के वर्णन से युक्त है। ___अन्योक्ति या अन्यापदेश उस काव्य को कहते हैं, जिसमें जीवन से संबद्ध किसी तथ्य का वर्णन अप्रत्यक्ष रूप से किया गया हो । उसमें किसी वस्तु या किसी काल्पनिक व्यक्ति का नाम देकर वर्णन किया जाता है । वह बात सामान्य रूप से सब पर लागू हो सकती है। कश्मीर के राजा शंकरवा । ८८३-६०२ ई० ) के आश्रित कवि भल्लट ने इस प्रकार का सर्वप्रथम काव्य लिखा है । भल्लटशतक की भाषा सरल है। इन इलोकों में स्वतंत्र विचार का भाव स्पष्ट दिखाई देता है । सुभाषित ग्रन्थों में इसके श्लोक उद्धत किए गए हैं । देखिए :--
__ अन्तरिच्छद्राणि भूयांसि कण्टका बहवो बहिः ।
कथं कमलनालस्य मा भवन् भंगुरा गुणाः ।। कश्मीर के राजा हर्ष (१०८९-११०१ ई० ) के आश्रित कवि शम्भु ने अन्योक्तिमुक्तालता नामक काव्य लिखा है । इसमें अन्योक्ति की पद्धति के १०८ श्लोक है। जगन्नाथ पण्डित के भामिनीविलास के प्रथम भाग को अन्यापदेशशतक भी कहते हैं ।
नैर्गुण्य मेव साधीयो धिगस्तु गुणगौरवम् ।
शाखिनोऽन्ये विराजन्ते खण्ड्यन्ते चन्दनद्रुमाः ।। नीलकण्ठ दीक्षित का अन्योक्तिशतक या अन्यापदेशशतक लेखक की उच्च कल्पनाशक्ति का परिचय देता है । यह काव्य सर्वश्रेष्ठ अन्योक्ति-काव्यों में से एक है । वीरेश्वर ( समय अज्ञात ) का अन्योक्तिशतक इसी प्रकार के भाव से युक्त है।