SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीति-विषयक और उपदेशात्मक काव्य किया है, जिसका उसने स्वयं अभ्यास किया था । कुसुमदेव ने दृष्टान्तशतक लिखा है । वल्लभदेव ( १५०० ई० ) ने उसका उल्लेख किया है । अतः वह इस समय से पूर्व हुआ है । उसने इस ग्रन्थ में जीवन के आदर्शों का उदाहरणों के साथ वर्णन किया है । द्याद्विवेद ने १४९४ ई० में नीतिमंजरी ग्रन्थ लिखा है । इसमें उसने नीति की बातों का वर्णन किया है और उसके लिए उदाहरण ऋग्वेद, सायण के वेदभाष्य और बृहद्देवता आदि से लिए हैं । कतिपय स्थलों पर उसने वेद के मन्त्रों को उद्धृत किया है और उनकी व्याख्या भी की हैं । १५६ जगन्नाथ पण्डित ( १५६०- १६६५ ई० ) ने भामिनीविलास लिखा है । इसमें चार भाग हैं । इनमें क्रमशः अन्योक्ति, शृङ्गार, करुण और शान्त रस का वर्णन है । इनमें क्रमशः १०१, १००, १६ र ३२ श्लोक हैं । ये श्लोक भाव और ओज से परिपूर्ण हैं । तृतीय भाग में करुणरस का प्रवाह है । इस भाग में एक स्थान पर भामिनी शब्द का प्रयोग आता है । इसके आधार पर यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि संभवतः लेखक की पत्नी का नाम भामिनी था और उसके स्वर्गवास के दुःख में उसने अपने भाव इन श्लोकों में प्रकट किए हैं । ऐसा अनुमान किया जाता है कि उसने इस ग्रन्थ का नाम उसके आधार पर ही भामिनीविलास रक्खा है । अन्तिम भाग में लेखक ने जीवात्मा से अनुरोध किया है कि वह शान्त रस को अपनावे | इस भाग के द्वारा ज्ञात होता है कि लेखक कितना उच्चकोटि का भावुक कवि था । नीलकण्ठ दीक्षित ( १६५० ई० ) ने चार काव्यग्रन्थ लिखे हैं— कलिविड - म्बन, सभारञ्जनशतक, शान्तिविलास और वैराग्यशतक । कलिविडम्बन कलियुग की घटनाओं पर एक व्यंग्यप्रधान काव्य है । देखिए : यत्र भार्यागिरो वेदाः यत्र धर्मोऽर्थसाधनम् । यत्र स्वप्रतिभा मानं तस्मै श्रीकलये नमः ॥ सभारंजनशतक में बताया गया है कि किस प्रकार विद्वन्मण्डली को तथा राजसभा के व्यक्तियों को प्रसन्न करना चाहिए । यह व्यंग्योक्तियों से पूर्ण है । देखिए :
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy