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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास शब्दों की रचना' एनम्, एनेन आदि अन्वादेश वाले प्रयोग, नमः स्वस्ति आदि के साथ होने वाली विशेष विभक्तियाँ' । इसके अतिरिक्त नाटकों में उच्च श्रेणी के पुरुष पात्रों के द्वारा संस्कृत भाषा का प्रयोग और निम्न श्रेणी के पुरुष पात्रों तथा स्त्रियों के द्वारा प्राकृत का प्रयोग, इस बात के मानने पर ही उचित प्रतीत होता है कि नाटकों के अन्दर भाषाओं के प्रयोग में अन्तर दैनिक व्यावहारिक जीवन से ही लिया गया है । रामायण, महाभारत और पुराणों की भाषा भी इसी निर्णय की सूचक है। श्रेण्यकाल में संस्कृत बोलचाल और साहित्यिक भाषा के रूप में बहुत लोकप्रिय हुई। संस्कृत में सभी विषयों पर ग्रन्थ लिखे गए । यह राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई । प्राचीन समय से लेकर १६ वीं शताब्दी ई० तक शिलालेख, स्तम्भ-लेख, दानपत्र, राजकीय शासन-पत्र और प्रशस्तियाँ आदि प्रायः संस्कृत में ही लिखी गई । बौद्ध और जैन, जो कि प्राकृत का प्रयोग अधिक उचित मानते थे, उन्होंने भी ईसवीय शताब्दी के प्रारम्भ के बाद साहित्यिक कार्यों के लिए संस्कृत को अपनाया । बौद्ध दार्शनिक अश्वघोष (प्रथम शताब्दी ईसवीय) ने बौद्ध विचारों के प्रचारार्थ संस्कृत का ही आश्रय लिया । प्रसिद्ध वैद्यराज चरक ( प्रथम शताब्दी ) ने वैद्यों के वार्तालाप में संस्कृत भाषा के प्रयोग का उल्लेख किया है। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत भ्रमण के समय तत्कालीन बौद्धों के द्वारा संस्कृत भाषा के प्रयोग का उल्लेख किया है । ६०६ ई० में जैन लेखक सिद्धर्षि ने जैन भावों को लेकर 'उपमितिभावप्रपंचकथा' नामक ग्रन्थ संस्कृत में लिखा । इस ग्रन्थ में उसने प्राकृत की अपेक्षा संस्कृत भाषा के प्रयोग के लाभों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है। १. २. ३. . " " " १-३-६० २-४-३२, २-४-३४ २-३-१६, २-३-१७ :
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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