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नीति-विषयक और उपदेशात्मक काव्य
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बात पर बल दिया गया है कि मनुष्यों में साधारणतया प्राप्त होने वाले दुर्गुणों को दूर किया जाय । साथ ही इसमें शिव की भक्ति पर बल दिया गया है और संन्यास की प्रशंसा की गई है ।
मोहमुद्गर, शंकराचार्य की रचना मानी जाती है। इसमें सांसारिक विषयों को छोड़ने और मायाजाल से मुक्त होने का उपदेश दिया गया है । इसमें नैतिक और दार्शनिक भाव हैं । शंकराचार्य के कुछ और ग्रन्थ इस प्रकार के माने जाते हैं । उनमें दार्शनिक भाव हैं और वे उपदेशात्मक हैं ।
कश्मीर के राजा जयापीड ( ७७६ - ८१३ ई०) के प्राश्रित कवि दामोदरगुप्त ने कुट्टिनीमत नामक ग्रन्थ लिखा है । इसका दूसरा नाम शम्भलीमत है । इसमें ९२७ श्लोक हैं और यह अपूर्ण है । इसे वेश्याओं का शिक्षाग्रन्थ कह सकते हैं । इसमें बताया गया है कि किस प्रकार वेश्याएँ मनुष्यों को अपने जाल में फँसाने और उन्हें धोखा दें । इस ग्रन्थ की प्रसिद्धि इस बात से ज्ञात होती है कि इसके बहुत से श्लोक सुभाषितग्रन्थकारों ने अपने ग्रन्थों में उद्धृत किए हैं ।
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एक जैन लेखक श्रमितगति ने ९९४ ई० में सुभाषितरत्नसन्दोह और १०१४ ई० में धर्मपरीक्षा नामक दो ग्रन्थ लिखे हैं । इनमें से प्रथम में ३२ अध्याय हैं। इसमें जैन साधुयों और साधारण जनों के लिए प्राचारविषयक नियम । इसमें हिन्दुओं के देवताओं और हिन्दुओं के व्यवहारों पर बहुत कटु आक्षेप हैं । दूसरे ग्रन्थ में हिन्दू धर्म की अपेक्षा जैन-धर्म की उत्कृष्टता बताई गई है ।
क्षेमेन्द्र ( १०५० ई०) ने नीतिविषयक और उपदेशात्मक कई ग्रन्थ लिखे हैं । इसके ग्रन्थ चारुचर्या में १०० श्लोक हैं । इसमें लेखक ने सुन्दर व्यवहार के लिए आवश्यक नियमों को उदाहरण के साथ प्रस्तुत किया है । चतुर्वर्गसंग्रह में जीवन के उद्देश्यस्वरूप चारों चीजें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का बड़ी सुन्दरता के साथ प्रतिपादन किया है । सेव्यसेवकोपदेश में ६१ श्लोक हैं । इसमें स्वामी और सेवक दोनों को व्यंग्यात्मक ध्वनि में उपदेश दिया गया है ।