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गीति काव्य
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ई० के लगभग हुआ था । उसके गीतिकाव्यों में श्रीरंगराजस्तव और श्रीगुणरत्नकोश बहुत प्रसिद्ध हैं ।
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गीतगोविन्द के रचयिता जयदेव ने गंगास्तव नामक धार्मिक गीतिकाव्य भी लिखा है | जयदेव का गीतगोविन्द यद्यपि मुख्यरूप से श्रृंगारिक है तथापि उसकी कतिपय विद्वान् भक्तिकाव्य मानते हैं ! बिल्वमंगल या कृष्णलीलाशुक के कृष्णकर्णामृत के विषय में भी यही बात है । इसके तीन विभागों में ३१० पद्य हैं । इसमें शृंगार का अंश उतना मुख्य नहीं है, जितना गीतगोविन्द में । वह मालाबार का निवासी माना जाता है । कुछ विद्वानों के मतानुसार यह कवि और दार्शनिक विद्वान् ८वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ था और कुछ के मतानुसार वह १२वीं शताब्दी में हुआ था । इसके काव्य में श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तृत वर्णन है । इस काव्य की प्रसिद्धि देश भर में चारों ओर फैली है । बंगाल में चैतन्य के आन्दोलन की उत्पत्ति और विस्तार पर इस काव्य का बहुत प्रभाव पड़ा है ।
द्वैत मत के प्रमुख आचार्य श्रानंदतीर्थ, प्रसिद्ध नाम मध्य, ( ११ee१२७७ ई० ) ने बहुत से ग्रन्थ लिखे हैं । इनमें उसका द्वादशस्तोत्र प्रसिद्ध गीतिकाव्य है ।
वेदान्तदेशिक (१२६८-१३६६ ई०) ने २५ गीतिकाव्य लिखे हैं । इससे उसकी स्वाभाविक भक्ति और संस्कृत भाषा पर अधिकार का ज्ञान होता है । श्रीराम की पादुकाओं की स्तुति में एक सहस्र पद्यों से युक्त पादुका सहस्त्र नामक गीतिकाव्य उसने लिखा है । ऐसा माना जाता है कि अपने एक प्रतिस्पर्धी कवि की प्रतिस्पर्धा में उसने ये एक सहस्र पद्य एक ही रात्रि में बनाए हैं । यह गीतिकाव्य कवि की उच्च कल्पनाशक्ति से समन्वित सुन्दर रचना है । इसने गरुड़ पक्षी की स्तुति में गरुड़दण्डक लिखा है । श्रीराम की प्रशंसा में गद्यरूप में रघुवीरगद्य लिखा है । ये दोनों गीतिकाव्य लेखक की विभिन्न प्रकार की रचना की योग्यता को बताते हैं । उसने विष्णु की स्तुति में प्राकृत में १०० पद्यों से युक्त अच्युतशतक लिखा है । उसके अन्य गीतिकाव्य