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________________ १५० संस्कृत साहित्य का इतिहास लिखा । हरविजय काव्य के लेखक रत्नाकर ने शिव और पार्वती के संवाद के रूप में ५० पद्यों से युक्त वक्रोक्तिपंचाशिका नामक गीतिकाव्य लिखा है। यह काव्य वक्रोक्ति से परिपूर्ण है । इससे लेखक की पटुता का ज्ञान होता है । देखिए : त्वं हालाहलभृत्करोषि मनसो मर्छा ममालिंगितो हालां नैव बिभर्मि नैव हलं मुग्धे कथं हालिकः । सत्यं हालिकतैव ते समुचिता सक्तस्य गोवाहने वक्रोक्त्येति जितो हिमाद्रिसुतया स्मेरो हरः पातु वः ।। श्लोक २ कश्मीर के राजा अवन्तिवर्मा ( ८५० ई० के लगभग ) के आश्रित कवि आनन्दवर्धन ने पार्वती की स्तुति में देवीशतक काव्य लिखा है । इसमें शब्दालंकारों के होते हुए भी माधुर्य पूर्ण रूप से विद्यमान है । अभिनवगुप्त के गुरु उत्पलदेव (६२५ ई०) ने शिव की स्तुति में स्वरचित पद्यों का संग्रह स्तोत्रावलि नाम से स्वयं लिखा है। रामानुज के गुरु के गुरु यामुन थे। वह १००० ई० के लगभग हुए हैं। उन्होंने दो गीतिकाव्य चतुश्लोकी और स्तोत्ररत्न लिखे हैं। इनमें से प्रथम देवी लक्ष्मी की स्तुति में है और दूसरा विष्णु की स्तुति में । प्रथम में चार श्लोक हैं और द्वितीय में ६५ । ये दोनों गीतिकाव्य भावों और अनुभूत की उत्कृष्टता के लिये प्रसिद्ध हैं। विशिष्टाद्वैत के सर्वश्रेष्ठ आचार्य रामानुज (१०१७-११२५ ई०) ने गद्यरूप में तीन गीतिकाव्य गद्यत्रय नाम से लिखे हैं। इसमें शरणागतिगद्य, वैकुण्ठगद्य और श्रीरंगगद्य ये तीन काव्य हैं। ये अपनी हार्दिक प्रभावोत्पादकता के लिए प्रसिद्ध हैं। रामानुज के प्रमुख शिष्यों में श्रीवत्सांक एक था। उसने पाँच स्तुति-ग्रन्थ पंचस्तव नाम से लिखे हैं। इनके नाम हैं-श्रीस्तव, अतिमानुषस्तव, वरदराजस्तव, सुन्दरबाहुस्तव और वैकुण्ठस्तव । इनसे ज्ञात होता है कि यह कवि उच्च कल्पनाशील और परिष्कृत छन्द-निर्माता था। श्रीवत्सांक का सुयोग्य पुत्र पराशर भट्ट था । वह ११००
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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