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संस्कृत साहित्य का इतिहास
अर्थात् ( १ ) कालिदास से पूर्ववर्ती कवि, ( २ ) कालिदास, ( ३ ) कालिदास के परवर्ती कवि । कालिदास के पूर्ववर्ती काल का प्रतिनिधित्व केवल वाल्मीकि का रामायण करता है । कालिदास की साहित्यिक योग्यता और श्रेष्ठता के कारण उसके पूर्ववर्ती अन्य कवियों का नाम और उनकी कृतियाँ नष्ट हो गई हैं । इस समय भाव को सर्वोच्च स्थान दिया गया था और काव्य की शैली को गौण स्थान प्राप्त था । अतः कवियों को अपनी रचनात्मक शक्ति को विकसित और प्रकाशित करने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ । कालिदास और उसके तुरन्त बाद के कवि द्वितीय काल विभाग में आते हैं । इस समय भाव और भाषा को समान एवं संतुलित रूप दिया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि भाव और भाषा दोनों संतुलित रूप में प्रकट हुए । कवियों की रचना - त्मक शक्ति और आलंकारिक सौन्दर्य कविता में साथ-साथ चलते रहे । इस काल में कविता का जो उच्च रूप कालिदास ने प्रस्तुत किया, वह अश्वघोष के काव्य से कुछ अवनत अवस्था में प्राप्त होता है ।
तृतीय काल - विभाग की कतिपय प्रमुख विशेषताएँ हैं । वात्स्यायन के कामसूत्र ने तथा अन्य साहित्य - शास्त्रियों के शास्त्रीय ग्रन्थों ने कवियों को इतना प्रभावित कर दिया है कि उनकी कविता में कृत्रिमता और पूर्वानुकरण विशेष रूप से लक्षित होता है । प्रत्येक कवि अपने आश्रयदाता को तथा विद्वन्मंडली को सन्तुष्ट करना चाहता था । उसके काव्य को आलोचकों की परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ता था, तभी वह उचित स्थान पा सकता था । जो कवि ऐसे वातावरण में प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहते थे, उनके काव्यों में भावों के स्थान पर भावुकता, प्रवाह के स्थान पर कल्पना, अनुभूति के स्थान पर पाण्डित्य-प्रदर्शन दृष्टिगोचर होता है । जब रचनात्मक प्रवृत्ति का महत्त्व कम हुआ, तब काव्य के बाह्य रूप को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ और परिणामस्वरूप विषय का स्थान गौण हो गया । भावों की बलि देकर ही ऐसा करना संभव हुआ । कवियों ने केवल शाब्दिक - चमत्कार - प्रदर्शन में अपनी कुशलता का प्रदर्शन प्रारम्भ किया और इसकी प्रतियोगिता प्रारम्भ हो गई । महा