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कालिदास के बाद के कवि
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के बीच में है । नलोदय का रचयिता कालिदास को कहना भूल है । एक टीकाकार ने इसका लेखक रविदास लिखा है ।
अगस्त्य वारंगल के राजा प्रतापरुद्रदेव ( १२९४ - १३२५ ई० ) का आश्रित कवि था । परम्परा के अनुसार वह ७४ काव्यों का रचयिता है । इनमें से कुछ प्राप्य हैं । इसके आश्रयदाता ने इसको विद्यानाथ की उपाधि दी थी । उसने पाण्डवों के जीवन के विषय में २० सर्गों में बालभारत काव्य लिखा है । इसमें वैदर्भी शैली की सुन्दर मनोरमता प्राप्त होती है ।
वेदान्तदेशिक का वास्तविक नाम वेंकटनाथ था । इसका समय १२६८१२६६ ई० है । वह महान् कवि और दार्शनिक था । उसने संस्कृत और तामिल भाषा में विभिन्न विषयों पर लगभग १२० ग्रन्थ लिखे हैं । वह कांची का निवासी था और रामानुज के विशिष्टाद्वैत का अनुयायी था । उसने जीवन भर अथक साहित्यिक कार्य किया है । उसने यादवाभ्युदय नामक काव्य लिखा है । इसमें २४ सर्ग हैं । इसमें कृष्ण की कथा का वर्णन है । उसने कृष्ण के जीवन की प्रत्येक घटना को लिया है और उसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि देते हुए उसको साहित्यिक सौन्दर्य प्रदान किया है के द्वारा नरकासुर का वध तथा नरकासुर की जाने का वर्णन है । साथ ही विमान से भूतल के दृश्यों के रूप का वर्णन है । इसके पष्ठ सर्ग में भारवि और माघ के तुल्य शब्दालंकारों का प्रदर्शन है । लेखक ने विभिन्न शैलियों का भी प्रदर्शन किया है । उसको उसकी विद्वत्ता के आधार पर वेदान्ताचार्य, कवितार्किकसिंह और सर्वतन्त्रस्वतन्त्र उपाधियाँ दी गई थीं । उसके इस काव्य की टीका अप्पयदीक्षित ( १६०० ई० ) ने की है ।
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इसके १८वें सर्ग में कृष्ण राजधानी से कृष्ण के द्वारका
गंगादेवी विजयनगर के बुक्क प्रथम ( १३४३ - १३७६ ई० ) के द्वितीय पुत्र कम्पन की पत्नी थी । उसने मथुराविजय या वीरकम्परायचरित नामक काव्य लिखा है । यह अपूर्ण रूप में उपलब्ध है । उसने अपने पति के पराक्रम और उसके दक्षिण की ओर यात्रा का वर्णन किया है । कम्पन मथुरा गया और वहाँ के राजा का उसने वध किया । अतः उसने मथुराविजय नाम