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कालिदास के बाद के कवि
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गया है । लगभग इसी समय एक जैन कवि अभयदेव हुआ है । उसने १२२१ ई० में १६ सर्गों में जयन्तविजय नामक काव्य लिखा है । इसमें उसने विक्रमसिंह के परिवार के एक राजा जयन्त के जीवन का वर्णन किया है ।
अरिसिंह ने १२२२ ई० में ११ सर्गों में सुकृतसंकीर्तन नामक काव्य लिखा है । यह राजा वीरधवल ( १२२० ई० ) के मन्त्री वस्तुपाल का आश्रित कवि था । इसमें उसने वीरधवल की वंशावली और वस्तुपाल के परोपकारों का वर्णन किया है । वस्तुपाल के प्रशंसक एक कवि बालचन्द्रसूरि ने १२४० ई० में १४ सर्गों में वसन्तविलास नामक काव्य लिखा है । इसमें वस्तुपाल के कार्यों का वर्णन किया गया है । वस्तुपाल का मित्र सोमेश्वरदेव वीरधवल का आश्रित कवि था । वह १३वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ था । उसने १५ सर्गों में सुरथोत्सव नामक काव्य लिखा है । इसमें उसने चैत्र वंश के राजा सुरथ का सुयश - वर्णन किया है । वस्तुपाल के प्राश्रित कवियों में एक कवि श्रमरचन्द्र ( १२५० ई०) भी था । इसने ४४ सर्गों में बालभारत नामक काव्य लिखा है । इसमें महाभारत की कथा वर्णित है । शैली की दृष्टि से इसमें कालिदास के रघुवंश की-सी मनोज्ञता है ।
देवप्रभसूरि ने १८ सर्गों में पाण्डवचरित नामक काव्य लिखा है । इसका समय १२५० ई० के लगभग है । इसमें पाण्डवों के जीवन का वर्णन है और उच्च गुणों के आचरण पर बल दिया गया है । चन्द्रप्रभसूरि ने १८७८ ई० में जैन सन्त प्रभावक के जीवन के विषय में प्रभावकचरित काव्य लिखा है । वीरनन्दी ने १३वीं शताब्दी में चन्द्रप्रभचरित नामक काव्य लिखा है । यह १८ सर्गों में है । इसमें राजा कनकप्रभ और जैन मुनि चन्द्रप्रभ का जीवनचरित वर्णित है । सर्वानन्द ने १३०० ई० के लगभग ७ सर्गों में जगदूचरित नामक काव्य लिखा है । यह १२५६ ई० में गुजरात में पड़े अकाल के समय जगद् नामक जैन मुनि के द्वारा की गई अकाल पीड़ितों की सहायता का वर्णन करता है । नयचन्द्र ने १३१० ई० के लगभग १७ सर्गों में हम्मीरमहाकाव्य नामक काव्य लिखा है । इसमें चौहान वंशी राजा हम्मीर का वर्णन किया गया सं०सा० इ०-- ६