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कालिदास के बाद के कवि
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एक जैन लेखक हरिचन्द ने धर्मशर्माभ्युदय नामक महाकाव्य लिखा है । इसमें २१ सर्ग हैं । इसमें एक जैन मुनि धर्मनाथ का जीवन-चरति वर्णन किया गया है । उस पर माघ और वाक्पति का प्रभाव पड़ा है । अतः उसका समय ८०० ई० के बाद होना चाहिए। उसका परिचय प्राप्त है ।
नीतिवर्मा ने कीचकवध नामक एक काव्य लिखा है । इसमें पाँच सर्ग हैं | इसमें भीम के द्वारा कीचक के वध का वर्णन है । इसमें अनुप्रास और श्लेष का बहुत अधिकता के साथ प्रयोग किया गया है । इस लेखक के काल और परिचय के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है । भोज (१००५ से १०५४ ई०) ने इसके काव्य का उल्लेख किया है । इस आधार पर विद्वानों ने इसका समय नवीं शताब्दी माना है ।
रत्नाकर ने ५० सर्ग में हरविजय नामक महाकाव्य लिखा है । वह कश्मीर के जयादित्य और अवन्तिवर्मा का प्रश्रित कवि था । उसकी उपाधियाँ राजानक, वागीश्वर और विद्याधिपति थीं । अतः उनका समय ८५० ई० है । इसके काव्य में चार सहस्र श्लोक हैं । इसमें शिव के द्वारा अन्धक नामक राक्षस के वध का वर्णन है । अन्धक राक्षस जन्म से अन्धा था । उसने तपस्या की और असाधारण शक्ति प्राप्त करके संसार का अधिपति बन गया । इससे भयभीत होकर देवताओं ने शिव की सहायता माँगी । शिव ने स्वयं जाकर उस राक्षस का वध किया | इस ग्रन्थ के देखने से ज्ञात होता है कि यह साहित्य-शास्त्रियों के द्वारा निर्धारित महाकाव्य के लक्षणों को पूर्णतया वर्गत करने के लिए ही लिखा गया है । यह असाधारण रूप से लम्बा है । लेखक ने यह स्वीकार किया है कि बाण की गद्य शैली का अनुकरण करने का उसने प्रयत्न किया है । काव्य की दृष्टि से यह उच्चकोटि का ग्रन्थ नहीं है, तथापि नृत्य के सिद्धान्तों का विस्तृत वर्णन होने के कारण बहुमूल्य ग्रन्थ है । रत्नाकर के वसन्ततिलकाछन्द के प्रयोग - कौशल को क्षेमेन्द्र ने प्रमाणित किया ।
भट्ट शिवस्वामी या शिवस्वामी ने २० सर्गों में कप्पणाभ्युदय नामक काव्य लिखा है । वह कश्मीर के प्रवन्तिवर्मा ( ८५० ई० ) का आश्रित कवि