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संस्कृत साहित्य का इतिहास
कालिदास का समय निश्चित करने के लिए कोई भी वाह्य या अन्त:साक्ष्य निश्चित रूप से उपलब्ध नहीं है । तथापि उसका समय ४७२ ई० के शिला लेख के बाद नहीं है । इस शिलालेख का रचयिता वत्सभट्टि है । इसकी कविता पर कालिदास के मेघदूत का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । (६०० ई०) ने कालिदास का बहुत आदरपूर्वक उल्लेख किया है । ६३४ ई० के ऐहोल के शिलालेख में कालिदास का नामोल्लेख है । अतः कालिदास का समय ४०० ई० के बाद नहीं रखा जा सकता है ।
बाण
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भारतीय परम्परा के अनुसार कालिदास राजा विक्रमादित्य का प्रश्रित कवि था । यह परम्परा नवीन ज्योतिष के ग्रन्थ ज्योतिर्विदाभरण के एक श्लोक के आधार पर है । वह श्लोक है
धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंह - शंकुः - वेतालभट्टघटकर्परकालिदासाः । ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ।।
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इस पद्य के अनुसार धन्वन्तरि क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि ये राजा विक्रमादित्य के नवरत्न थे । इनमें से क्षपणक, शंकु और वेतालभट्ट ये अब नाममात्र ही हैं । धन्वन्तरि, वररुचि और घटकर्पर कौन हैं, इसका निश्चय नहीं हुआ है । अमरसिंह अमरकोश के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं । उसका समय निश्चित नहीं है, परन्तु वह ४०० से ६०० ई० के बीच में रहा होगा । वराहमिहिर एक ज्योतिर्विद् हैं । इनका देहान्त ५८७ ई० में हुआ है । अतः इस श्लोक के आधार पर यह सिद्ध नहीं किया जा सकता है कि उपर्युक्त नवों व्यक्ति समकालीन हैं। इससे केवल यही सिद्ध होता है कि कालिदास राजा विक्रमादित्य का आश्रित कवि था । परन्तु विक्रमादित्य का समय निश्चय करना बहुत कठिन है ।
ज्योतिर्विदाभरण के इस श्लोक के आधार पर कालिदास के समय के विषय में बहुत से मन्तव्य उपस्थित किए गए हैं । यह प्रयत्न किया गया कि