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पुराण
इस काल में जो काव्य लिखे गए, उनमें साहित्यशास्त्रियों द्वारा निर्धारित कतिपय नियमों का पालन करना आवश्यक था । महाकाव्य का प्रारम्भ मंगलाचरण या इसी प्रकार के अन्य भाव से होना चाहिए । महाकाव्य सर्गों में विभक्त होना चाहिए और प्रत्येक सर्ग का अन्तिम श्लोक सर्ग में प्रयुक्त हुए छन्द से पृथक् छन्द में होना चाहिए । इसमें नगरों, समुद्रों, पर्वतों, ऋतुनों, सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्रोदय, चन्द्रास्त, विवाह, युद्ध, विप्रलम्भ शृङ्गार तथा मदिरापान प्रादि का वर्णन होना चाहिए। इनमें से कवि कोई भी वर्णन अपना सकता है और उसका सुन्दर ढंग से वर्णन कर सकता है ।
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कालिदास से पूर्व का समय अन्धकारमय है । कालिदास ने अपने काव्यसौन्दर्य के लिए विभिन्न छन्दों और अलंकारों का जो बड़ी चतुरता से उपयोग किया है उससे ज्ञात होता है कि कालिदास से पूर्व काव्य - साहित्य बहुत उन्नत अवस्था में था । कालिदास के द्वारा उसको पूर्णता प्राप्त हुई है । कालिदास के पूर्ववर्ती कवियों में वाल्मीकि हैं । उनको आदि कवि कहना उपयुक्त है । वे लौकिक काव्य के जन्मदाता हैं । उनको रचना रामायण, जो कि आदि काव्य है, ग्राज तक विद्यमान है । यह संभव ज्ञात होता है कि वाल्मीकि को आदर्श - मानकर बाद की रचनाएँ हुई हैं । महाकाव्य के जो लक्षण किए गए हैं, वे रामायण और महाभारत की विशेषताओं को आधार मान कर ही किए गए हैं। सुभाषित ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि पाणिनि ने पातालविजय और जाम्बवतीविजय नामक काव्य लिखे हैं । पाणिनि का एक सुन्दर श्लोक इस प्रकार है-गतेऽर्धरात्रे परिमन्दमन्दं
गर्जन्ति यत्प्रावृषि कालमेघाः । अपश्यती वत्समिवेन्दुबिम्बं
तच्छवरी गौरिव हुंकरोति ॥
पतंजलि के महाभाष्य से ज्ञात होता है कि वररुचि अर्थात् कात्यायन ने भी एक काव्य लिखा था । पिंगल, जिनका दूसरा नाम पिंगलनाग है, ने छन्दशास्त्र पर छन्दसूत्र लिखा है । उनका समय वैदिक काल के बाद मानना
सं० सा० इ० - ७