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संस्कृत साहित्य का इतिहास
हैं । महाभारत और हरिवंश में इसका उल्लेख आता है । बाण (६०० ई० ) ने अपने ग्राम में वायुपुराण के पाठ का वर्णन किया है । इसमें बौद्ध और जैन धर्म का उल्लेख नहीं है । इसमें गुप्त साम्राज्य का उल्लेख है । इसमें एक अध्याय संगीत विषय पर भी है । इस पुराण का अधिकांश भाग ५०० ई० पू० से पूर्व लिखा हुआ माना जाता है । स्कन्दपुराण में पाँच संहिताएँ हैं । उनके नाम हैं -- सनत्कुमारीय, ब्राह्मी, वैष्णवी, शंकर या अगस्त्य और सौर । इनके अतिरिक्त काशीखण्ड नामक ५० छोटे अध्याय हैं । इनमें बनारस और उसके समीपवर्ती मन्दिरों का वर्णन है । इनमें सूतसंहिता बहुत प्रसिद्ध है । इसमें शिवभक्ति का वर्णन है । माधवाचार्य ( १३५० ई० ) ने इस पर तात्पर्यदीपिका नाम की टीका लिखी है । सम्पूर्ण पुराण में ८ सहस्र से अधिक श्लोक हैं । अग्निपुराण का वर्णन विश्वकोश के रूप में है और यह अग्नि के द्वारा वसिष्ठ को बताया गया है ।
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देवीभागवत भी इन पुराणों में से एक पुराण माना जाता है । पुराणों में भागवत के स्थान पर इसका नाम आता है । यह शिव की प्रिया देवी पार्वती की प्रशंसा में लिखा गया है । योगवासिष्ठ दार्शनिक ग्रन्थ है । यह ६ प्रकरणों में विभक्त है । यह भी पुराण के तुल्य है ।
उपर्युक्त १८ पुराणों के अतिरिक्त १८ उपपुराण भी हैं । इन सबके लेखक व्यास माने जाते हैं । इनमें कर्मकाण्ड की विधियाँ अधिक हैं, कथा आदि का अंश कम है । इनमें से अधिक के नाम वही हैं, जो मुख्य पुराणों के हैं । इनमें से कालिकापुराण विशेष रूप से उल्लेखनीय है । यह काली का विभिन्न रूपों में वर्णन करता है और काली को समर्पण किए जाने वाले जीवों और मनुष्यों की बलि का वर्णन करता है ।
इनके अतिरिक्त और भी ग्रन्थ हैं जो पुराणों के रूप में हैं, परन्तु उनकी गणना पुराणों में नहीं है । उनमें से विष्णुधर्मोत्तर काश्मीरी वैष्णव धर्म का