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प्रथम ढाल
३७ समाधान-सराग संयमको धारण करनेसे, ब्रत, शील, संयमको पालन करनेसे जीव विमानवासी देवोंमें उत्पन्न होता है । जो सम्यग्दर्शन सहित उक्त ब्रतादिकका पालन करते हैं, वे इन्द्र, प्रतीन्द्र आदि महर्दिक देवोंमें उत्पन्न होते हैं और जो मिथ्या दृष्टि उक्त व्रत आदिका पालन करते हैं, वे निम्न श्रेणी के वैमानिक देवोंमें उत्पन्न होते हैं। __ संसार-परिभ्रमणका मूल कारण मिथ्यादर्शन है, इसके कारण ही जीव चतुर्गतिमें नाना प्रकारके दुःख भोगा करता है । मिथ्यादर्शनके समान त्रिलोक और त्रिकालमें भी जीवका कोई अन्य शत्रु नहीं है । इसलिए संसारसे भयभीत प्राणियोंको इससे त्यागका और सम्यग्दर्शनके धारण करनेका प्रयत्न करना चाहिए बिना सम्यग्दर्शन के जीव का संसार से उद्धार नहीं हो सकता है।
इस प्रकार ग्रन्थकारने इस प्रथम ढालमें चतुर्गति-परिभ्रमण का वर्णन किया।