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छहढाला
अपने से अधिक विभूति वाले देवोंको देखकर उनके हृदय में ईर्ष्या की अग्नि जलती रहती है और उसे प्राप्त करनेके लिए अनेक संकल्प-विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं । उन्हें अपने पुण्योदय से प्राप्त भोगोंमें संतोष नहीं रहता, इस कारण वे आकुलता रूप महान् मानसिक दुःख का सदा काल अनुभव करते रहते हैं ।
विमानवासी देवोंको यद्यपि भवनत्रिकके समान ईष्याभाव नहीं होता और वे उनकी अपेक्षा बहुत अधिक सुखी भी होते हैं, तथापि सम्यग्दर्शनके बिना अपनी प्रियतमा देवियोंके वियोगकाल में वे अत्यन्त दुःखका अनुभव करते हैं । इसके अतिरिक्त देवोंकी आयुके जब छह मास शेष रह जाते हैं, तब उनके गले में पड़ी हुई कल्पवृक्षोंकी माला मुर्झा जाती है, और वस्त्राभूषण कान्तिहीन हो जाते हैं । यह देखकर वे देव एकदम आश्चर्यसे स्तम्भत रह जाते हैं और फिर अवधि ज्ञानसे जब उन्हें यह ज्ञात होता है कि हमारी देवपर्यायके सिर्फ छह मास ही शेष रह गये हैं, तब मिथ्यादृष्टि देव अत्यन्त विकल होते हैं, और नानाप्रकारके विलाप करते हैं । उस समय उनके परिवारके तथा अन्य देव आकर समझाते हैं और उसके दुःख को दूर करने की भरपूर चेष्टा करते हैं, परन्तु मिथ्यात्व - मोहित-मति होनेके कारण उसकी समझमें कुछ नहीं आता है और ज्यों ज्यों समय बीतता जाता है त्यों त्यों वह अधिक विलाप करके अत्यन्त दुःखी होता जाता है । जब उसे यह ज्ञात होता है कि यहांसे मरकर जीव