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छहढाला
समाधान - जो ज्ञान और चारित्रको धारण करते हुए भी मिथ्यात्व न छूटनेके कारण धर्म - पालन में शंका - शील रहते हैं, संक्ल ेश भावसे युक्त होकर व्रत उपवास आदि करते हैं, स्त्रीके वियोग से संतप्त होते हुए भी जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, ऐसे जीव भवनवासी देवोंमें उत्पन्न होते हैं । जो मनुष्य हास्य आदि के वशीभूत हो असत्य-संभाषण में अनुरक्त रहते हैं, सदा दूसरों की नकल किया करते हैं, परिहास उड़ाया कहते हैं, ऐसे जीव कन्दर्प जातिके भवनवासी देवोंमें उत्पन्न होते हैं । जो मनुष्य भूतिकर्म और मंत्राभियोग करते हैं, नाना प्रकारके कौतूहलों में लगे रहते हैं, लोगों की खुशामद किया करते हैं, वे व भवनवासी देवोंमें उत्पन्न होते हैं । जो मनुष्य तीर्थकर, व संघ की महिमा पूजा तथा आगम ग्रन्थ आदिके प्रतिकूल आचरण करते हैं दुर्विनयी और मायाचारी होते हैं, उनके यदि भाग्यवश देवायुका बंध हो जाय तो वे किल्विषिक जाति के देवोंमें उत्पन्न होते हैं। जो जीव क्रोध, मान, माया और लोभ में आसक्त हैं, चारित्र धारण करते हुए भी निर्दय भावसे युक्त हैं, वे असुरकुमार देवोंमें उत्पन्न होते हैं । जीवन पर्यंत सद्धर्मको धारण करके भी जो जीव मरण के समय उसकी विराधना कर देते हैं और समाधिके विना मरण को प्राप्त होते हैं, वे कन्दर्प, अभियोग्य, सम्मोह आदि नाना प्रकार के निकृष्ट भवनवासी देवोंमें उत्पन्न होते हैं * ।
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★ देखो तिलोयपण्णत्ती ० ३ गाथा १६८ से २०६ तक