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पांचवी ढाल
१६. आकार दोनों पैर फैलाए और कटि भाग पर दोनोंहाथ रखे हुए पुरुषके समान है। इसके तीन भाग हैं ', अधोभागको पाताललोक कहते हैं जहाँ नारकी आदि रहते हैं। मध्य भागको तिर्यक् लोक या मध्यलोक कहते हैं, जिसमें असंख्यात द्वीप समुद्रोंकी अनादि-निधन रचना है, इसी भागमें मनुष्य और तिर्यंच रहते हैं। इससे ऊपरके भागको ऊर्ध्वलोक कहते हैं, जहाँ स्वर्ग पटल हैं और देव, इन्द्र, अहमिन्द्र आदि निवास करते हैं । सबसे ऊपर सिद्धलोक है । जहाँ अनन्त सिद्ध विराजमान हैं। इस प्रकारके लोकमें अनादिसे यह जीव यथार्थ ज्ञान न होनेके कारण जन्म-मरण करता हुआ चक्कर लगाता है । इसमें एक प्रदेश भी बाकी नहीं बचा है, जहाँ पर इस जीवने अनन्त बार जन्म और मरण न किया हो। पाप करनेसे यह नरक-तिर्यचोंमें उत्पन्न हुआ । पुण्य करनेसे मनुष्य और देवोंमें पैदा हुआ परन्तु मोक्ष
• प्रसारितांघ्रिणा लोकः कटिनिक्षिप्तपाणिना। तुल्यः पुसोर्ध्व मध्याधोविभागस्त्रिमरुद्वृतः ॥७०।।
___क्षत्र• लं० ११ • णिरया हवंति हेटा मज्झे दोवंयुगमयोसंखा। सग्गो तिमट्टिभेयो रत्तो उड्दं हवे मोक्खो ॥४०॥
बारण-अगुवेक्खा । * जन्ममृत्योः पदे ह्यात्मन्नमख्यातप्रदेशके । लोके नायं प्रदेशोऽस्ति यस्मिन्नाभूरनन्तशः ॥७१॥
क्षत्र चू० लं० ११