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________________ ११६ छहढाला अर्थ- जसे पहले भूतकाल में जितने अनंत जीव मोक्षको गए हैं, आज वर्तमान में विदेहक्षेत्रों में जारहे हैं और आगे भविष्य कालमें जितने अनन्तानन्न जीव मोक्ष को जावेंगे सो यह सब सम्यग्ज्ञानकी महिमा है ऐसा मुनियों के स्वामी जिनेन्द्र भगवान ने कहा है । पांचों इन्द्रियों के विषय-भोगोंकी चाह रूपी यह दावानल ( जंगल की आग ) जगत्-जन रूपी अरण्य ( जंगल, वन ) को जला रहा है - समस्त संसारको भष्मसात् कर रहा है, इस भयंकर विषय चाह-रूप दावानलको बुझानेके लिए संसारकी कोई भी वस्तु समर्थ नहीं है, एक मात्र सम्यग्ज्ञान रूपी मेघमंडल ही उसके बुझानेमें समर्थ है। इसलिए रात-दिन बढ़ती हुई इस विषय- तृष्णरूपी अग्निको शान्त करनेके लिए सम्यग्ज्ञानके पानेका पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए । लोग कहते हैं आचार्योंका कहना सच है, हमभी समझते हैं, कि संसार की कोई भी संपदा साथ जाने वाली नहीं हैं और इस विषय-वाहको रोकनेके लिए सम्यग्ज्ञान ही एक मात्र उपाय है । परन्तु क्या करें, आज यह आपत्ति आगई, तो कल वह आपद् आगई । कभी किसी का जन्म हुआ, तो कभी किसी का मरण, एक झटसे छुटकारा नहीं हो पाता है, कि तुरन्त उससे बढ़कर दूसरी नई झंझट सामने तैयार रहती है, इन मंझटों और उनकी चिन्ताओं के कारण हमें आत्मकल्याणके लिए चाहते भी अवकाश ही नहीं मिलता। फिर आप बतलाइए कि हम कैसे आत्म-कल्याणके मार्गमें लगें ? इस प्रकार कहने वाले भोले
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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