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________________ २८ भ्रम विध्वंसनम् । एफ बोल संउली श्रद्धारूप शुद्ध छै ते प्रथम गुण ठाणों छै। निथ्यात्वीना जेतला गुण ते मिथ्यात्व गुण ठाणो छै। जिम छठा गुण ठाणा रो नाम प्रमादी है, तो ए प्रमाद छै ते तो गुण ठाणा नहीं छै ए प्रमाद तो सावध छ। अने छठो गुण ठाणा निरवद्य छै। पिण प्रमादे करि ओलखायो छै। जे प्रमादी नो सर्वचरित्र रूपगुण ते प्रमादी गुण ठाणो छै। तथा बली दशवां गुण ठाणा रो नाम सूक्ष्म-सम्पराय छ। ते सूक्ष्म तो थोड़ो सम्पराय ते लोभने सूक्ष्म संपराय थोड़ो लोभ ते तो सावध छै । एतो गुणा ठाणा नहीं। दशमो गुण ठाणो तो निरवद्य छ। ते किम सूक्ष्म संपराय वाला नों जे चरित्र रूप गुण ते सूक्ष्म संप. राय गुण ठाणो छ। तिम मिथ्यात्वी राजे केतला एक शुद्ध श्रद्धा रूप गुण ते मिथ्यात्व गुण ठाणो छै। तिवारे कोई कहै-प्रथम गुण ठाणे किसा बोल संवला छ । तेहनो उत्तर-जे मिथ्यात्वी 'गाय ने गाय श्रद्ध. मनुष्य ने मनुष्य. श्रद्धे. दिनने दिन श्रद्ध. सोना ने सोनो श्रद्ध. इत्यादि जे संवली श्रद्धा छै ते क्षयोपशम भाव छै। अने मिथ्यादृष्टि में क्षयोपशम भाव अनुयोग द्वार सूत्र में कही छै। ते संवली श्रद्धा रूप गुणने प्रथम गुणठाणो कहिजे। ए तो निरवद्य छ । कर्म नो क्षयोपशम कह्यो छै। जद कोई कहे-ए प्रथम गुण ठाणो निरवद्य कर्म नो क्षयोपशम किहां कह्यो छै । तेहनो उत्तर-समवायांगे १४ जीव ठाणा कह्या छै। त्या एहयो पाठ छ। कम्म विसोहिय मग्गणं. पडुच्च. चोदस जीवठाणा. प० तं० मिच्छदिट्ठी. सासायण सम्मदिट्ठी सम्ममिच्छदिट्ठी, अविरयसम्मदिट्ठी, विरयाविरए. पम्हत्त संजए. अप्पमत्त संजए. नियहि अनिट्टिबायरे, सुहुमसंपराए उवसमएबा खवएवा, उवसंतमोहेवा, खीणमोहे, सजोगी केवली, अजोगी केवली ॥ ५ ॥ समयायांग. स. १४
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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