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________________ मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकारः। क० कर्म विशोधं विशेषण. ५० आश्री ने. घो० चवदह जीवना स्थानक भेद कहा १४ गुणठाणा. ते कहै छै. मि. मिथ्यात्व गुण ठाणे. सास्वादन. सम्यग्दृष्टि. सम्यगमिथ्यादृष्टि. भवति सम्यग्दृष्टि. व्रताप्रती. प्रमत्तसंयत. अप्रमत्तसंयत. नियट्टिवादर. अनियट्रिटवादर सूत्म सम्पराय ते उवशाम्या थी अने क्षीण थी. उपशान्त मोह, क्षीण मोह, सजोगी केवली, प्रजोगी केवली। इहां इम कह्या-जे कर्मनी विशुद्धि ते क्षयोपशम तथा क्षायक आश्री १४ जीवठाणा परूप्या। इहां चौदह जीवठाणा कर्मनी विशुद्धि आश्री कह्या पिण कर्म उदय न कह्यो। मोह कर्मना उदय आश्री कहिता तो सावध, अने कर्मनी विशुद्धि भाश्री कह्या ते भणी निरवद्य छै । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति १६ बोल सम्पूर्ण। वली केतला एक घणी अयुक्ति लगाय ने मिथ्यात्व गुणठाणे भली करणी शील संतोष क्षमादिक मास क्षमणादिक तप करे ते करणी सर्व आज्ञा बाहिरे कहे छ। तेहनो उत्तर-जो मिथयात्वी री भली करणी आज्ञा बाहिरे हुवे तो मिथ्यात्वी रो सम्यग्दृष्टि किम हुवे, घणा जीव मिथ्यात्यो थकां शुद्ध करणी करतां कर्म खपाया सम्यग्दृष्टि पाया छ, जो अशुद्ध करणी हुवे तो अशुद्ध आज्ञा बाहिर ली करणी सं सम्यग्दृष्टि किम पावे। तिवारे कोई इम कहे-जो प्रथम गुणठाणा रो धणी करणी करतां सम्यग्दृष्टि पामें ते आज्ञा माहि छै. तो ग्यारमा गुणठाणा रो धणी पहिले गुणठाणे आवे तेहनी करणी आज्ञा वाहिरे कहिणी। तेहनो उत्तरग्यारमा गुणठाणा रो धणी ग्यारमा थी तो पहिले गुणठाणे आवे नहीं, ग्यारमा थी तो दशमे आवे, अने मरे तो चौथे आवे इम दशमा थी नवमें नवमा थी आठमें आठमा थो सातमें, सातमा थी छठे आये। या सर्व गुणठाणा थी मरे तो चउथे आवे। प तो विशेष निर्मल परिणाम थी उतरतो आयो पिण सावध मशुभ योग सूं न आयो। जिम किणही महीनों पचख्यो ते शुद्ध पाली पनरे १५ पचख्या इम १० पचख्या जाव 'शुद्ध पाली उपवास पचख्यो जे मास क्षमण कीधो । शिवारे धर्म घणो अनें उपवास रो धर्म थोड़ो थयो। परं उपवास रो पाप नहीं।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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