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________________ or कविताऽधिकारः । केतला एक अज्ञानी कहे- साधु नें जोड़ करणो नहीं। जोड़ किया मृ भाषा लागे, इम कहे तो तेहने लेखे साधु ने बखाण देणो नहीं। जो जोड़ कियां मृषा लागे तो वखाण दियां पिण मृषा लागे । वली धर्मचर्चा करता. ज्ञान सीखतां. पिण उपयोग चूक झूठ लग जाये तो तिण हे लेखे साधु ने बोलणो इज नहीं । अनें जो बखाण दियां. धर्मचर्चा कियां. दोष नहीं तो निरवद्य जोड़ कियाँ पिण दोष नहीं । अनें जे कहे जोड़ न करणी तेहनों जवाब कहे छै । नन्दी सूत्र में जोड़ करण रो न्याय कह्यो छै । ते पाठ लिखिये छै । एव माइ याइं चउरासिई पइन्नग सहस्साई भगवओ अरह उस सामियस्स आइतित्थयरस्स तहा संखिजाई पइरणग सहस्साइ मज्झिमगाणं जिणावराणं चोदस पन्नग सहस्साणि भगवत्र वद्धमान सामिस्स अहवा जस्स जत्तियासीसा उप्पत्तियाए. विणइयाए कम्मियाए, परिणामियाए. चविहीए. बुद्धिए उचवाए त्तस्स तत्तियाइ' पन्नग सहस्साई ' पत्तेय बुद्धावि तत्तिया चैत्र । से तं कालिय । 1 । ( नन्दी - पञ्चज्ञानवर्णन ) च० चौरासी हजार प० पइन्ना कालिक सूत्र. भ० भगवन्त श्र० अरिहन्त उ० ऋषभ देव स्वामी ने होइ. आ० धर्म नी आदि ना करणहार. त० तथा संख्याता हजार प० पइन्ना कालिक सूत्र. म० मध्यम. जि० जनवर तीर्थङ्कर में होई. च० १४ हजार प० पइन्ना कालिक सूत्र. भ० भगवन्त च० वर्द्धमान स्वामी ने होइ. ज० जेहना जेतला शिष्य हुवा. ते. उ० श्रौत्पातिक करो. वि० विनय बुद्धि करी. क० कार्मिक बद्धि करी. ५० परिणामिक बुद्धि करी. च
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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