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________________ उच्चार पासवणाऽधिकारः । ४३३ जिम साधु में लेश्या ६ पावे पिण सर्व साधु में नहीं। लिम कोई आवे नहीं देखे नहीं तिहाँ उच्चारादिक परठे कह्या । ते पिण किणहिक द्रव्य आश्री छै। वली १० दोष रहित क्षेत्र में परठणो कह्यो छै। कोई आवे नहीं देखे नहीं. संयम प्रचारी विराधना न हुवे. सम बरोवर भूमि. तृणादिक रहित. बहु काल थयो भूमि में अचित्त थया ने. विस्तीर्ण भूमि. ४ अंगुल ऊपरली अचित्त. प्रामादिक थी दूर. ऊंदरादिक ना विल धावे नहीं. त्रस बीजादिक रहित. ए १० बोल हुवे तिहां परठणो कह्यो। ते समचे द्रव्य परठण रा १० बोल कह्या। पिण १.१ द्रव्य परठे ते ऊपर १० बोल रो नियम नहीं । तिम उच्चार पासवण परठी न पूंछे तो प्रायश्चित्त कह्यो ते उच्चार ने पूंछणो छै। पिण पासवण रो पाठ कह्यो ते तो उच्चार रे सहचर हुवे ते माटे भेलो पाठ कह्यो छै। तिम १० दोष रहित क्षेत्र में उच्चारादिक द्रव्य परठणा कया। ते पिण किणहिक द्रव्य आश्री दश दोष रहित क्षेत्र कह्यो। पिण सर्व द्रव्यां ऊपर १० बोल नहीं। बृहत्कल्प ३१ कह्यो साधु ने बाजार में उतरणो ते माटे बाजार में उतरसी. तो मात्रादिक किम न परठसी। भनें जो गृहस्थ देखता मात्रो न परठणो तो पाणी रोकडदो. रेत. राख. भाटो. ढलियो. लूहणादिक नों धोवण, पगारे गोवरादिक लागो. इत्यादिक सीत मात्र कांई परठणो नहीं। तिहां तो सर्ब द्रव्य बा छै। जिम एक सीत मात्र परठे ते ऊपर १० दोष रहित क्षेत्र न मिले। तिम मात्रो परठे तिहां पिण १० दोष रहित क्षेत्र नों नियम नथी । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति ५ बोल सम्पूर्ण । इति उच्चार पासवणाऽधिकारः।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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