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________________ ar पुण्याधिकारः । केतला एक अजाण जीव- ते साधु विना अनेरां ने दीघां पुण्य बंधतो कहे ते पुण्य ने आदरवा योग्य कहे. ते पुण्य ने मोक्ष नों साधन कहे. ते ऊपर सूत्र नो नाम लेवी कहे, भगवती श० १ उ० ७ जे जीव गर्भ में मरी देवता था तिहां एह पाठ को छै । “सेणं जीवे धम्म कामए पुण्य कामए सग्ग कामए मोक्का धम्म कखिए पुण्ण कंखिए सग्ग कंखिए मोक्ख कंखिए" इहाँ धर्म. पुण्य. स्वर्ग. मोक्ष नों अभिलाषी ( बंछणहार ) श्री तीर्थङ्करे कह्यो, ते माटे ए पुण्य आदरवा योग्य छै. तिण सूं भगवान् सरायो छै । जो पुण्य छांडवा योग्य हुवे तो संरावता नहीं । इम कहे तेनो उत्तर- इहां पुण्य भगवान् सरायो नहीं । आदरवा योग्य को नहीं । ए तो जे गर्भ में मरी देवता थाय. तेहने जेहवी वांछा हुन्ती ते बताई छै । पिण पुण्य नी वाञ्छा करे तेहने सरायो नहीं । तिणहिज उद्देश्ये इम कह्योजे गर्भ में मरी नरके जाय ते पर कटक ( दूसरा री सेना ) थी संग्राम करे । तिहां पहवो पाठ छै ते लिखिये छै । सेणं जीवे अत्थ कामए. रज कामए. भोग कामए. काम कामए. अत्थ कंखिए. रज कंखिए. भोग कंखिए. काम कखिए । अत्थ पिवासिए. रज्ज पिवासिए. भोग पिवा - सिए. काम पिवासिए तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्भवसिए तत्तिव्वत्र सारखे तदट्टो उत्ते तदपि करणे तदभावणा भाविए एवं सिणं अंतरसिकालं करेजा नेरइएस उववज्जइ । ( भगवती श० १०७ )
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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