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पुणयाधिकारः।
से० ते. जी० जीव केहवो छै. अर्थ नों छै काम जेहनें. र. राज्य नों छै काम जेहनें. भो० भोग नों के काम जेहने. का० शब्द रूप नों काम छै जेहनें. अ. अर्थ नी कांक्षा ( वांछा ) छै जेहनें र० राज्य नी कांक्षा छै जेहनें. भो० भोग नी कांक्षा के जेहनें. का० शब्द रूप नी कांज्ञा छै जेहनें. अर्थ पिपासा. राज्य पिपासा. भोग पिपासा. काम पिपासा छै जेहनें. त० तिहां चित्त नों लगावनहार. त० तिहां मन नों लगावनहार. त० लेश्यावन्त. त० अध्यवसायवन्त. ति० तोब प्रारम्भवन्त. अर्थयुक्त रह्यो थको करण. भा० भावता भावता इन अन्तरे काल करे ते ने नरक में विषे उपनें.
अथ इहां नरक जाय ते जीव में अर्थ नों कामी. राज्य नों कामी. भोग नों कामी. काम नों कामी. तथा अर्थ नों, राज्य नो, भोग नो, काम नो, कांक्षी ( वंक्षणहार ) श्री तीर्थङ्करे कह्यो। पिण अर्थ. भोग. राज्य. काम. नी बांछा करे ते आज्ञा में नहीं। जिम अर्थ. भोग. राज्य. काम. नी वांछा करे ते आज्ञा में नहीं. जिम अर्थ. भोग. राज्य. काम. नी वांछा ने सरावे नहीं। तिम पुण्य नी वांछा ने स्वर्ग नी वांछा ने पिण सरावे नथी। “पुण्णकामए. सग्गकामए" ए पाठ कह्यां माटे पुण्य नो वांछा ने सराई कहे तो तिण रे लेखे स्वर्ग नों कामी वांछक कह्यो ते पिण स्वर्ग नी वांछा सराई कहिणी। अने स्वर्ग की वांछा करणी तो सूत्र में ठाम २ वर्जी छ । दशवैकालिक अ० उ० ४ एहबा पाठ कह्या छै ते लिखिये छै। __ चउव्विहा खलु तव समाहि भवइ. तंजहा–नोइह लोगट्रयाए तेव महिहिजा नी परलोगट्टयाए तब महिद्विजा नो कित्ति वरण सद्द सिलोगट्टयाए तव महिटिज्जा नन्नत्थ निजरट्रयाए तव महिठिज्जा ।
( दशवै० अ० ६ उ०४)
च० चार प्रकार नी. ख० निश्चय करी ने. प्रा० आचार समाधि. भ० हुवे छै. तं० ते कहे है. नो० इह लोक में अर्थ ( चक्रवर्ती आदिक हुवा नें अर्थे ) नहीं. त० तप करे. नो० नहीं. प० परलोक ( इन्द्रादिक हुआ ) में अर्थे. त० तप करे. नो० नहीं. कि० कीर्ति. वर्ण. शब्द. श्लोक. (श्लाघा ) में अर्थे. त० तप करे. न० केवल. नि. निर्जरा ने अर्थे त० तप करे.
अथ इहां परलोक नी वांछा करवी वर्जी, तो स्वर्ग ने तो परलोक कहीजे, ते परलोक नी वांछा करी तपस्या पिण न करणी तो स्वर्ग नी वांछा करे नेहनें