SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विनयाऽधिकारः । वली कोई कहे-छोटा साधु पिज बड़ा श्रावक नों विनय रो पुत्र व्रत आदला, भने पछे इज छै । ति ने नमस्कार कियां धर्म किम होवे । बड़ा साधु रो विनय करे तिम छोटा श्रावक ने करणो । इम कहे तेहनों उत्तर-प्रथम तो श्रावक ते पुत्र आगे पिताई १२ व्रत धारला, त्यांरे लेखे पुत्र रे पगां पिता ने लागणो । जिम पहिला दीक्षा पुत्र लोधी पछे पिता लोधी, तो ते पिता साधु, पुत्र साधु रे पगां लागे तेहनी ३३ असातना ढाले । तिम पुत्र आगे पिता १२ व्रत धारला तो तेही पिण ३३ असातना ठालणी, न टाले तो ते पिता ने अविनीत विनय मूल धर्म से उत्थापणहार त्यांरे लेखे कहीजे । इम पहिलाँ वह व्रत आदला, पछे वहू सासू व्रत आदला, तो ते बहू नों विनय करणो । इमहिज पहिलां गुमाश्ता व्रत धारला, पछे सेठ व्रत धारला, ते गुमाश्ता ने पासे सेठ समझयो तो तेहने धर्माचार्य जाणी घणो विनय करणो । जो विनय न करे तो त्यांरे लेखे तेहने अविनीत कहीजे विनय मूल धर्म से उत्थापणहार कहीजे । पिण इम नहीं । विनय तो साधु न इज करणो कह्यो छै । अने श्रावक नों विनय करे ते तो पोता नों छांदो है । पिण धर्म हेते नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । कने हीत १४ बोल सम्पूर्ण । इति विनयाधिकारः । ३८ ૨૭
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy