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अभिनव प्राकृत - व्याकरण
भूतकृदन्त
( ७२ ) भूतकालिक कृदन्त बनाने के लिए अ, इअ, और इय प्रत्यय जोड़े जाते हैं। यथा
अ - हु + हुआ, मुक्क + अ = मुक्क, ग + अ = गअ ।
इअ - गाल + इअ = गालिअ, भक्ख + इअ = भक्खिअ ।
इय - कह + इ = कहिय, छड्ड + इय = छड्डिय, उप्पड + इ = उप्पाडिय 1
सम्बन्धक कृदन्त
(७३) पूर्वकालिक क्रिया या सम्बन्धक कृदन्त के लिए संस्कृत में क्त्वा और ल्यप् प्रत्यय होते हैं । अपभ्रंश में पूर्वकालिक क्रिया के लिए निम्न आठ प्रत्यय जोड़े जाते हैं ।
इ-लद्द + इ = लहि इउ - कर + इ = करिउ इवि - कर + इवि = करिवि अवि - कर + अवि = करवि
लब्ध्वा ।
कृत्वा ।
कृत्वा ।
कृत्वा ।
=
एप्पिकर + एप्पि = करेप्पिद कृत्वा । एप्पिणु-कर + एप्पिणु: एविणु - कर + एविणु = करेविणु एवि - - कर + एवि :
करेवि < कृत्वा ।
=
करेष्पिणु < कृत्वा । कृत्वा ।
हेत्वर्थ कृदन्त
( ७४ ) क्रियार्थक क्रिया या हेत्वर्थ कृदन्त के लिए अपभ्रंश में निम्न आठ प्रत्यय जोड़ने से रूप बनाये जाते हैं । संस्कृत में यह कार्य तुमुन् प्रत्यय से और हिन्दी में 'ना' 1 प्रत्यय लगाकर चलाया जाता है । यथा
एवं - चय् + एवं = चएवं त्यक्तुम् — छोड़ना । दा + एवं + देवं < दातुम् —देना
अण - भुंज् + अण = भंजण भोक्तुम् — भोगना ।
ु
कर + अण = करण < कर्तुम् —करना ।
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अहं - सेव + अहं सेवणहं द सेवितुम् — सेवना । भुंज + अहं = भुंजणहं एप्पि - कर + एप्पि करेप्पि
भोक्तुम् - भोगना । कर्त्तम् - करना । जि + एप्पि = जेप्पिन् जेतुम् - जीतना ।
एप्पिणु-कर + एप्पिणु = करेष्पिणु चयू + एप्पिणु = चएप्पिणु
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कर्तुम् - करना । त्यक्तुम् — छोड़ना ।