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________________ ४८० प्र० पु० म० पु० उ० पु० प्र० पु० म० पु० उ० पु० एकवचन करइ, करेइ करहि, करसि करिमि, कर अभिनव प्राकृत व्याकरण कर धातु के रूप वर्तमानकाल एकवचन करिज्जउ करिज्जहि, करिज्जइ करिज्जउ आज्ञार्थ एवं विध्यर्थक एकवचन प्र० पु० करेसइ, करेहइ म० पु० करेसहि, करेससि करिहिसि उ० पु० करेसमि, करीहिमि, करि इज -- गणिज्जह, कहिज्जइ, वणिजइ । इन फिट्टियइ, वणियइ । भविष्यत्काल ,, बहुवचन करहिं, करन्ति करहु, करह करहुँ, करिमु भूतकाल के लिए भूतकृदन्त का ही प्रयोग होता है । यथा- गयं गतम्, किर्यं कृतम्, पठ्ठे प्रतिष्ठितम् । कर्मणि प्रयोग के लिए इज या इय प्रत्यय जोड़कर रूप बनाये जाते हैं । । "" " बहुवचन करियां, करिज्ज कृदन्त ( ७२ ) वर्तमान कृदन्त अंत और माण प्रत्यय जोड़कर बनाया जाता है । अंत प्रत्यय परस्मैपद में और माण प्रत्यय आत्मनेपद में जुड़ता है । यथा अंत - डज्झ + अंत = डज्मंत - परस्मैपद में | सिंच + अंत = सिंचंत - ܕܐ करिज्जहु किज्जउं "" कर + अंत = करंत--- पइस + अंत = पइसंतवज्ज + अंत = वर्जत उग्गम + अंत = उग्गमंत -,, माण- पविस्स + माण = पविस्समाण - आत्मने पद में । वट्ट + माण = वट्टमाण भण + माण = भणमाण 33 हुच्च + माण = हुच्चमाण --,, बहुवचन करे सहि, करेद्दिति करेसहु, करेसहो करेस
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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