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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण ४४५ राचा< राजा-चवर्ग के तृतीय वर्ण ज के स्थान पर उसी वर्ग का प्रथम वर्ण च हुआ है। णिच्छरो<णिज्झरो< निर्झर:-ज्झ के स्थान पर च्छ । दसवतनो< दसवदनोर दशवदन:-मध्यवर्ती द के स्थान पर त । सलफो< सलभो< शलभः–भ के स्थान पर फ। (२) पैशाची में ज्ञ के स्थान पर ज आदेश होता। जैसेपञ्जा< प्रज्ञा–ज्ञ के स्थान पर ज हुआ है। सञ्जा< संज्ञा- ,, , सव्वजो< सर्वज्ञ:-, " विज्ञान र विज्ञानम्-, , (३) राजन् शब्द के रूपों में जहां-जहां ज्ञ रहता है, वहां-वहां ज्ञ के स्थान में विकल्प से चिञ् आदेश होता है। यथा राचिना लपितं, रञा लपितं दराज्ञा लपेतम्-विकल्प से ज्ञ के स्थान में चित्र आदेश होने पर राचिना और विकल्पाभाव में ज्ञ के स्थान पर म आदेश होने से राज्जा रूप बना है। राचिनो धनं, रजो धनं राज्ञो धनम् । ( ४ ) पैशाची में न्य और ण्य के स्थान में अ आदेश होता है। यथाकन्नका, अभिम - कन्या, अभिमन्युः -न्य के स्थान पर न । पुजाहं ८ पुण्याहम्- ' (५) पैशाची में णकार का नकार होता है। यथागुनगनयुत्तो< गुणगणयुक्तः --शौरसेनी के ज के स्थान पर न। गुनेन<गुणेन- , ( ६ ) पैशाची में तकार और दकार के स्थान में तकार हो जाता है। यथाभगवती, पव्वती भगवती, पार्वती-तकार के स्थान त हुआ है। मतनपरवसो< मदनपरवशः -द के स्थान पर त आदेश हुआ है। सतनं सदनम् - " " तामोतरो< दामोदरः - , होतु होदु-शौरसेनी के दु के स्थान पर तु हुआ है। (७ ) पैशाची में ल के स्थान ळकार हो जाता है। यथा १. ज्ञो न पैशाच्याम् ८।४।३०३ हे. ३. न्य-एयोजः ८।४।३०५ । ५. तदोस्तः ८।४।३०७...... .. २. राज्ञो वा चित्र ८।४।३०४ । ४. णो नः ८।४।३०६ । ६. लो ळ: ८।४।३०८ ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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