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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
४३१ ( ८२ ) इम, क और ज शब्दों से तो, डि, दाणिं, ह, हं और तर प्रत्यय होते हैं और इम के मकार का लोप होता है । यथा__इम + तो= इत्तोर इत:-म का लोप ।
इम +त्तो = एत्तो, इतो, इओ-मकार का लोप, इ को एत्व ।
विकल्प से तकार का लोप होने से इ ओ और त को द्वित्व न होने पर इतो रूप बनता है।
क+त्तो कत्तो, कओ< कुतः । ( ८३ ) सप्तम्यन्त क शब्द से अहि, इह और गहु प्रत्यय होते हैं । यथा
क + अहि = कहि, क + इह = किह, क + ण्हु = कण्हु, क + स्थ = कत्थर कर्दि, कुत्र ।
क + तो = कुतो-अकार को उकार आदेश हुआ है। क + तो = कुओ-,, , और तकार का लोप । क + स्थ = कुत्थ अकार को उकार ।
( ८४ ) ज और पगाम शब्दों से पनवम्यर्थ में आए और तो प्रत्यय होते हैं। यथा-ज+ आए = जाए यतः ।
ज+ तो = जत्तो, जओ, जतो, यतः–त को द्वित्व और त का लोप होने से जओ, जतो रूप बनते हैं।
पगाम + आए = पगामाए, पगाम + तो = पगामतो प्रकामतः । ( ८५ ) पञ्चम्यन्त शब्दों से आ, ओ, ते और ए प्रत्यय होते हैं । यथा
त + आ = ता< ततः, त + ओ = तो, त+ ते = तते, त + ए = तए, ततो, तओ, तत्तो, तए (ततः।
(८६ ) पञ्चम्यन्त ज शब्द से हं प्रत्यय होता है। ज + ण्हं = जण्हं, ज+ म् = जं,-यत:, त+म् = तं-तत:।
दा-सव्व + दा = सया, सदा-सच के स्थान पर स प्रत्यय होता है। सव्व + दा = सव्वदा, अन्न + दा = अन्नदा, अन्नया । हि-इम + हि-इण्हि-इम के मकार का लोप । इम + हि = इयहि-म के स्थान पर य । . . ण-अहु + णा = अहुणा< अथुना । दाणि-इम + दाणि = दाणि- इम का लोप और प्रत्यय शेष । इम + दाणि = इयाणि, इम + दाणि = इदाणि । इदानीम् । आहे-क + आहे = काहे ८ कर्हि, क + हि = कहि । हि + हियं—ज + हि = जहि, क + हिय = कहियं, तहि, तहियं । एव-क + एव + चिर= केवचिरंद कियच्चिरम् ।। क + एवच् + चिर = केवच्चिरं, क + एवच + चिरेण = केवच्चिरेण ।