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________________ अर्धमागधी साधारणतः अर्धमागधी शब्द की व्युत्पत्ति 'अधं मागध्या:' अर्थात् जिसका अर्धाश मागधी का हो वह भाषा 'अर्धमागधी' कहलायेगी। परन्तु जैनसूत्र ग्रन्थों की भाषा में उक्त व्युत्पत्ति सम्यक् प्रकार घटित नहीं होती। हां, नाटकीय अर्धमागधी में मागधी भाषा के अधिकांश लक्षण पाये जाते हैं। अर्धमागधी शब्द की एक व्युत्पत्ति में "अर्धमगधस्येयं” अर्थात् मगध देश के अर्धीश की भाषा को अर्धमागधी कहा जायेगा। इस व्युत्पत्ति का समर्थन ईस्वी सन् सातवीं शताब्दी के विद्वान् जिनदासगणि महत्तर ने निशीथचूर्णि-नामक ग्रन्थ में"पोराणमद्धमागहमासानिययं हवइ सुत्तं द्वारा किया है । अर्धमगध शब्द की व्याख्या करते हुए "मगहद्ध विसयभासानिबद्धं अद्धमागह" अर्थात् मगधदेश के अर्ध प्रदेश की भाषा में निबद्ध होने से प्राचीन सूत्रग्रन्थ अर्धमागध कहलाते हैं। अर्धमागधी में अट्ठारह देशी भाषाएँ मिश्रित मानी गयी हैं। बताया है-"अट्ठारसदेसीभासानिययं वा अद्धमागहं" । अन्यत्र भी इसे सर्वभाषामयी कहा है। अर्धमागधी का मूल उत्पत्ति स्थान पश्चिम मगध और शूरसेन (मथुरा) का मध्यवर्ती प्रदेश अयोध्या है। तीर्थङ्करों के उपदेश की भाषा अर्धमागधी मानी गयी है। आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव अयोध्या के निवासी थे, अत: अयोध्या में ही इस भाषा की उत्पत्ति हुई मानी जायगी। पर भाषा की भौगोलिक प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने पर अवगत होता है कि शौरसेनी या पूर्वी हिन्दी के साथ इस भाषा का विशेष सम्बन्ध नहीं है। महाराष्ट्री प्राकृत या आधुनिक मराठी के साथ इस भाषा का घनिष्ठ सम्बन्धा पाया जाता है। इन्हीं विशेषताओं के आधार पर डॉ० हॉर्नले ने बताया है कि अर्धमागधी ही सर्वार्धमागधी सर्वभाषासु परिणामिनीम् । सर्वेषां सर्वतो वाचं सार्वज्ञी प्रणिदध्महे ।। -वाग्भट्ट काव्यानुशासन पृ० २ मारिसवयणे सिद्ध देवाणं मद्धमागहा वाणी। -काव्यालंकार की नमिसाधुकृत टीका २, १२ । २. “It thus seems to me very clear, that the Prakrit of chanda is the Arsha - or ancient ( Porana) from the Ardhamagadhi, Maharashtra and Sauraseni"-Introduction to Prakrit Laksbana of chanda Page XIX
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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